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दुराग्रह का फल
सेठ बोला
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याद है, तुम हम एक साथ राजनगर से निकले थे। रास्ते में तुमने लोहा भरा
था, हमने हीरे।
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फेरी वाला कुछ देर तक घर-घूरकर सेठ को देखता रहा। उसको पिछले दृश्य याद आने लगे। लोहे की गठी लिये चल रहा है। साथियों ने हीरे दिये। ८८ उसने हीरे फेंक दिये।
वह चक्कर खाकर आँगन में गिर गया। नौकरों ने पानी के छींटे मारे तो उसे होश आया। वह फूट-फूटकर रोने लगा
हाय, मेरी फूटी तकदीर, मैं तो इनको गालियाँ देता था। तुम सब बदलूराम हो, मैं मर्द हूँ। मेरी किस्मत खराब थी जो मैंने इनकी बात नहीं मानी। अड़ा रहा।
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