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दुराग्रह का फल
सेठ ने उसे समझाया
जो आदमी अच्छाई को सामने देखकर भी अपनी झूठी जिद पर अड़ा रहता है; और बुराई से ही चिपका रहता है। उसका यही हाल होता है।
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अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
फिर भी सेठ ने अपनी मेब से सोने की कुछ मोहरें निकालकर दीं
क्यों, अब तो
मालिक, इसी सोने की मोहरें ले ) झूठी अकड़ ने बर्बाद लोगे या नहीं?
किया है मुझे।
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समाप्त
कथाबोध
ज्ञानी आचार्यों ने कहा है जो व्यक्ति अज्ञान दशा में असत्य को ग्रहण कर चुका है, परन्तु जान । होने पर, सत्य का दर्शन होने पर भी अगर अपने दुराग्रह और अहंकारवश सत्य को स्वीकार नहीं करता तो वह झूठी पकड़ वाला अंत में इसी प्रकार पछताता है। आधार-रायपसेणिय सुत्त