Book Title: Panch Ratna
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 22
________________ पाँच रत्न सेठ ने आश्चर्य से पूछाबहू, तुम्हें यह सब कैसे मालूम हुआ? 070 Coo पिताश्री ! मैंने एक ज्ञानी से यह सब जाना और यह भी जाना कि मैं सौभाग्यवती रहूँगी, इसीलिये मैंने यह उपाय किया। सेठ आत्मग्लानि से पश्चात्ताप करने लगा-1 सचमुच मैं महापापी हूँ। सरा विश्वासघाती हूँ। ब्राह्मण की धरोहर दबाकर मैंने महापाप किया और उसका घोर दण्ड भी पा लिया। देखो ! विश्वासघात करने का कैसा फल मिला। समाप्त चरित्र बोध : श्रावक के दूसरे व्रत में नियम दिलाया जाता है-"किसी की धरोहर नहीं माऊंगा' किसी की अमानत हड़पकर उसके साथ विश्वासघात करना महापाप है। जिसके साथ विश्वासघात होता है, उसकी आत्मा अत्यन्त व्याकुल और संतप्त रहती है, जिस कारण गहरी शत्रुता बँध जाती है। जन्म-जन्म तक यह वैर का बदला प्रतिशोध के रूप में चलता रहता है। प्राचीन जैन साहित्य की यह कथा हमें विश्वासघात के महापाप से बचने की शिक्षा देती है।

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