________________
पाँच रत्न रत्नों को देखते ही सेठ के मन में लालच आ गया। | रत्न को छूते समय एक बार उसका दिल जरूर धड़काबस, ये दो रत्न बेचकर ही मैं
मैंने दूसरे अणुव्रत में नियम लिया कोटिध्वज बन जाऊँगा। नारायण
था "न्यासापहार नहीं करूंगा" मेरा क्या बिगाड़ लेगा। कौन
मेरे व्रत का क्या होगा? साक्षी है इसका।
(CROREASYA
| उसने दो रत्न निकाले और बाजार में बेचकर दो करोड़ मुद्राएँ प्राप्त | कर ली। कुछ ही समय में सेठ ने पाँच मंजिला भवन खड़ा कर लिया, घर के आगे चाँदी का रथ खड़ा रहने लगा। लोग देखते ही रह गये
किन्तु धन के लालच ने सेठ की विवेक बुद्धि पर पर्दा डाल दिया। पाँच वर्षों बाद नारायण लौटकर आया। यात्रा में सब धन खर्च हो जाने से वह दरिद्र जैसा दीख रहा था। वह सीधा बलभद्र सेठ के घर आया। सेठ ने नारायण को पहचानते हुए भी अजनबीपन दिखाया
अरे, कौन है? क्यों आया है। सेठजी, मुझे। यहाँ? हट, हट। देखता नहीं, पहचाना नहीं? मैं हूँ सीधा भीतर चला आया बिन नारायण। मेरी रत्नों बुलाया मेहमान कौन है त? की पेटी दे दीजिए।
सेठ बलभद्र के पास एकदम इतनी लक्ष्मी
कहाँ से आ गई?/ *व्यासापहार = अमानत में खयानत
पूरे चम्पा नगरी में सबसे ऊँची हवेली सेठजी की ही है।