Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 29
________________ |* मानव-जीवन की सार्थकता * *. २५ * - हाँ, तो लकड़हारा विचार करता है-भूख लगी है, भोजन मिलना चाहिए। स्वादिष्ट, सजा-सजाया भोजन का थाल आ गया। भोजन किया, तृप्त हो गया। फिर विचार किया-कभी धूप है, कभी छाँव है, कभी सर्दी-गर्मी है, कभी बरसात आ जाती है, एक मकान भी होना चाहिए। मकान क्या? धन-दौलत भी होनी चाहिए। अरे, इस मकान में अकेले. मन भी नहीं लगता, शादी भी हो गई। अब सारा दिन पत्नी का मुख थोड़ा देखा करूँगा? मित्र-मण्डली भी होनी चाहिए। मित्र-मण्डली भी आ गई। मित्र-मण्डली के साथ ताश भी हो। जोश को लाने के लिए वो लाल-लाल पानी जिसे शराब कहते हैं, वो भी होनी चाहिए। सब कुछ चिन्तामणि के प्रभाव से मिल गया। महफिल जोरों के साथ जम गई। उधर वो देव विचार करता है-'अरे, मैंने उस घसियारे को चिन्तामणि रत्न दिया। देखू तो सही उसका क्या हाल है? अब तो भगवान का नाम लेता होगा। दो घड़ी बैठकर प्रभु का भजन खूब करता होगा। चलो, उसको देखना चाहिए।' देव आया, उसने देखा-यहाँ का तो नक्शा ही बदला हुआ है। देव सोचता है-'मैंने इसको चिन्तामणि रत्न दिया था, प्रभु का भजन करने के लिए, पर यहाँ पर मामला और ही है। चलो, मुझे क्या है, मैं अपना चिन्तामणि रत्न वापस ले लूँगा।' कौवे का रूप बनाया देव ने और महल की मुंडेर पर बैठ गया और काँव-काँव करनी शुरू कर दी। उधर खेल चल रहा था। उनके खेल में बाधा पड़ी। रंग में भंग हो रहा है। उस घसियारे ने, जो सेठ बना हुआ है, कौवे को कहा-"उड़ जा।" कौआ उड़ा नहीं। क्योंकि चिन्तामणि रत्न देव द्वारा दिया हुआ है, इसलिए उस पर आज्ञा नहीं चली। उसे गुस्सा आया, कहता-'अच्छा, यह कंकरी क्या काम आयेगी? यह तो बेकार हो गई।' अपने पल्ले से खोल कंकरी दे जोर से उस कौवे पर मारी। वास्तव में वह देव था, कौआ नहीं। अपनी चोंच में दबोच ली। कौआ चिन्तामणि रत्न को मुख में दबोचकर उड़ गया और नौ दो ग्यारह हो गया। सारा माल छूमंतर हो गया। पहले जैसा हाल हो गया, वहीं घास की गठरी एवं खुरपी नजदीक पड़ी है। घास खोदता है, बेचता है, अपने जीवन का निर्वाह करता है। जिस प्रकार उस घसियारे को घर बैठे चिन्तामणि रत्न मिला है। पर उसने उसका दुरुपयोग करके अपने आप से गँवा दिया है। उसी प्रकार हे इंसान ! तुम्हें भी यह मानव-जन्मरूपी चिन्तामणि रत्न मिला है। इसके मूल्य को पहचानो। इससे कुछ लाभ उठाओ। इसे विषय विकारों में मत गँवाओ। यह मानव-जीवन आसानी से नहीं मिलता। मुश्किल से मिलता है। - "राजगृह नगर का राजा श्रेणिक और धारिणी महारानी का बेटा मेघकुमार

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