Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 145
________________ * छठा फल : श्रुतिरागमस्य : आगम-श्रमण * * १४१ * की परिभाषा पंचेन्द्रिय जाति के जीवों की अपेक्षा से ही कही गई है और शब्दार्थ प्रधान है, रूढार्थ को व्यक्त नहीं करती। श्रुत पाँचों ही जीव जातियों में पाया जाता है। परन्तु श्रुत का आदान-प्रदान सर्वत्र नहीं है। पंचेन्द्रिय जाति के जीव ही कर्णेन्द्रिय वाले हैं। अतः उन्हीं में श्रुत के दान-ग्रहण का व्यवहार है। क्योंकि शब्द के ग्रहण के बिना श्रुत का दान या ग्रहण नहीं हो सकता। दान-ग्रहण व्यापार अर्थात् विधिवत् सूत्र का अध्ययन करना और कराना, पंचेन्द्रिय जीवों में भी मन वाले जीवों में ही श्रुत के दान एवं ग्रहण की विधि हो सकती है। पंचेन्द्रिय जाति में नरक, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य और देव इन चारों ही प्रकार के जीवों का समावेश होता है। मनुष्य गति में ही श्रुत अभ्यास की पद्धति का अस्तित्व है, शेष जीवों में नहीं। नरक और तिर्यंच अवस्था में जीवों की परवशता है। अतः वहाँ पठन-पाठन की विधि नहीं हो सकती। देव विशिष्ट शक्ति-सम्पन्न होते हैं। परन्तु उनमें भी श्रुत अभ्यास का विशेष अवकाश नहीं है, क्योंकि उनकी योनि भोग-प्रधान है। अन्य भवों में, मनुष्य-भव में अर्जित श्रुत ही कुछ . अवशिष्ट रह सकता है। इसलिए मनुष्य ही श्रुतज्ञान के अभ्यास का वास्तविक पात्र है और इसी दृष्टि से मनुष्यों को श्रुतज्ञान के अभ्यास की प्रेरणा दी गई है। मनुष्य का अधिकांश व्यवहार शब्द प्रमाण पर आधारित है। यदि मनुष्य को वाणी-व्यवहार उपलब्ध नहीं होता तो उसकी स्थिति पशु तुल्य ही रहती। मनुष्य के विकास में प्रत्येक क्षेत्र में शब्दों और शब्दों से निर्मित श्रुत का बहुत बड़ा हाथ है। श्रुत की विशिष्टता के कारण ही मनुष्य का अन्य जीवों से विशिष्ट . स्थान है। श्रुत की प्रधानता ग्रन्थारूढ़ श्रुत दीर्घकाल पर्यंत स्थित रह सकता है। शास्त्र पद्धति से सुरक्षित ज्ञान प्रत्येक क्षेत्र में विकास के सोपान का निर्माण करता है। ग्रन्थ में संरक्षित ज्ञान का ही पठन-पाठन हो सकता है। अतीत भावों को सर्वज्ञ के समान बताने वाला, वर्तमान उपलब्धि को प्रसारित करने वाला और अनागत ज्ञान को आधार प्रदान करने वाला शास्त्र निहित श्रृंत है। शास्त्रों में त्रैकालिक ज्ञान किस प्रकार संगृहीत होता है, इस बात का स्पष्टीकरण यहाँ पर किया जा रहा है। गत काल के प्रयोगों के तथ्य, घटनाओं के सत्य, आचरित पथ्यापथ्य, स्खलनाओं के द्वारा प्राप्त दण्ड आदि को स्मृति में रखने

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