Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 147
________________ | * छठा फल : श्रुतिरागमस्य : आगम-श्रमण * * १४३ * मिथ्या श्रुत जीव की समस्त उदात्त शक्तियों का तिरस्कार कर डालता है, उसके परमात्म-स्वरूप का अपमान कर डालता है। अतः जीव बार-बार दुःखी होते हैं, भव-भ्रमण में चक्कर लगाते हैं। सम्यक् श्रुत जिनागम, अर्थात् राग-द्वेष के विजेता के द्वारा कहे गये शास्त्र। राग-द्वेष से रहित उपदेष्टा ही आप्त हैं। ऐसे आप्त से उपदिष्ट होने के कारण ही जिनागम सम्यक् श्रुत है। जिनागम विषय प्रवाह में डुबाता नहीं है, बहाता भी नहीं है। परन्तु उनसे पार होने की शक्ति प्रदान करता है। जिनागम जीवों को सदैव ध्रुव लक्ष्य की ओर प्रेरित करता है और संसार के नश्वर पदार्थों के नग्न स्वरूप को दर्शाता है। वह जीवों के प्रशस्त भावों की पूर्णतः रक्षा करता है, उन्हें बढ़ाता है। लोक और अलोक का व्यवस्थित और यथार्थ निरूपण सम्यक श्रुत है। साध्य (अरिहन्त, सिद्ध), साधक (आचार्य, उपाध्याय और साधु), साधन (केवलि-प्रज्ञप्त या स्वाख्यात धर्म) के स्वरूप को हृदय में प्रतिष्ठित करने वाला सम्यक् श्रुत है। सम्यक् श्रुत के दाता गुरु ___ आँखों में ज्योति होते हुए भी व्यक्ति दीपक या अन्य प्रकाश के साधन के अभाव में अँधेरे में नहीं देख सकता है। वैसे ही अत्यधिक बुद्धिमान होते हुए भी . जिज्ञासु व्यक्ति गुरु की शिक्षा के अभाव में किसी भी विषय के शास्त्रज्ञान में पारंगत नहीं हो सकता है। विद्वान् भी अपने गुरुओं से शिक्षित होते हैं। अतः पूर्वागत और अपने गुरु के चिन्तन से प्रसूत ज्ञान प्राप्त होता है। उस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए गुरु के अभाव में काफी लम्बा समय लग सकता है। फिर भी वैसा असंदिग्ध ज्ञान प्राप्त न हो सके यह सम्भव है। अतः सर्वत्र ज्ञाता का प्रामाणिक महत्त्व है। सम्यक् श्रुत के दाता वास्तव में गुरु ही होते हैं। सम्यक् श्रुत प्रामाणिक ज्ञाता गुरु से ही उपलब्ध हो सकता है। शास्त्र का सीधा सम्बन्ध आत्मा से होता है, आत्मा के अनन्त ज्ञानदर्शन-चारित्र स्वरूप आलोक को व्यक्त करना एवं आत्म-स्वरूप पर छाई हुई विभाव परिणतियों की मलिनता का निवारण करना ही शास्त्र का मुख्य हेतु होता है। आगमवेत्ता आचार्य जिनभद्र गणी क्षमाश्रमण से शास्त्र का अर्थ पूछा गया तो उन्होंने बताया __सासिज्जइ तेण तहिं वा नेयमाया व तो सत्थं।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 145 146 147 148 149 150