Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 148
________________ १४४ पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * 'विशेषावश्यक भाष्य' गाथा १३८४ में कहा है - जिसके द्वारा यथार्थ सत्यरूप ज्ञेय का, आत्मा का प्रबोध हो एवं आत्मा अनुशासित हो, वह शास्त्र है। शास्त्र के इस अर्थ में शास्त्र का स्वरूप और उद्देश्य दोनों गर्भित हैं। यही बात 'उत्तराध्ययनसूत्र' में बताई गई है "जं सोच्चा पडिवज्जंति, तवं खंतिमहिंसयं । " - जिसे सुनकर जीव तप, क्षमा और अहिंसा आदि गुणों को प्राप्त करता है, वह शास्त्र है। तो इस प्रकार के आत्म-ज्ञानवर्द्धक शास्त्र का श्रवण कर पाना भी मनुष्य जन्म की सफलता का कारण है। जिस शास्त्र को सुनकर मन के विकार शान्त हो जाते हैं। जिस वाणी के प्रभाव से मन के मलिन विचार धुल जाते हैं और पवित्र भावों का, वैराग्य और विवेक का प्रकाश जगमगाने लगता है। ऐसे आगम या जिन प्ररूपित धर्मशास्त्र का सुन पाना भी मनुष्य के पूर्व पुण्यों का फल है । उपसंहार इस प्रकार आचार्य श्री सोमप्रभसूरि जी ने मानव जीवन को सफल बनाने वाले छह कार्यों का निर्देश किया है। इन छह कार्यों का पालन करने वाला, इनमें सत्पुरुषार्थ करने वाला अपने मनुष्य-जीवन को सफल बना सकता है और वह मानव महामानव बनकर एक दिन परम सुखों को भी प्राप्त कर लेता है ।

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