Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 96
________________ ९२ * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * है, उसे 'प्रभाकर' और 'भास्कर' कहते हैं । जिस प्रकार सूर्य रात्रि के अन्धकार को दूर करता है और सूर्य को किसी अन्य प्रकाश की एवं प्रकाश के साधनों की आवश्यकता नहीं रहती है। दीपक को जलाने के लिए तेल चाहिए, बाती चाहिए और अग्नि का स्पर्श भी चाहिए। दीपक का प्रकाश बाहर के आधार पर चलता है। और फिर लाखों, करोड़ों दीपकों में भी वह शक्ति कहाँ है कि वे रात को दिन बना दें, संसार का अन्धकार मिटा दें। आँधी और तूफानों से भी संघर्ष करके जलते रहें। मगर सूर्य में वह शक्ति है, जो सदा प्रकाशमान रहता है। उसे प्रकाश करने के लिए बाती नहीं चाहिए, जलने के लिए तेल नहीं चाहिए, उसे बाहर से कोई भी चीज उधार लेने की जरूरत नहीं है । वह सदा अपनी स्वयं की शक्ति से स्वयं प्रकाशमान होता रहता है । जैसे - सूर्य अन्धकार को दूर करने में समर्थ है। उसी प्रकार गुरु शिष्य के अज्ञानान्धकार को दूर करता है और शिष्य को कहता है-आत्मन् ! तू वास्तविक सूर्य है । तुझमें अनन्त - अनन्त प्रकाश छिपा है, अनन्त शक्तियाँ जगमगा रही हैं, तू आगे बढ़ और इस जीवन की धरती के गर्भ में, जीवन के अन्तराल में छिपा हुआ अन्धकार मिटा । भारतीय दर्शन ने आत्मा को भी सूर्य माना है । वेद वाक्य है "सूर्य आत्मा जगतस्तपश्च ।” - सूर्य जगत् का आत्मा है, तप है। संसार के अन्धकार को मिटाने के लिए हर आत्मा को आगे बढ़ना चाहिए। जिस प्रकार सूर्य कमल के खिलने में सहायक होता है, सूर्य की किरण का प्रथम स्पर्श पाते ही लाखों, करोड़ों कमल खिल पड़ते हैं, कलियाँ मुस्करा उठती हैं, संसार का कण-कण नई अँगड़ाई भरकर जाग उठता है, सर्वत्र सुषमा का अभिनव मोहक रंग निखर उठता है, संसार सूर्य के आलोक से गुदगुदाकर गतिशील हो जाता है। उसी प्रकार गुरु शिष्य के विकास का कारण होता है। गुरु शिष्य की उन्नति चाहता है। शिष्य के जीवन का निर्माण करना चाहता है। हे शिष्य ! अगर आत्मा का कल्याण चाहता है तो सूर्य के समान निर्माणकारी बनो । शक्ति के पुँज बनो । गुरु चन्द्र - भारत की प्राचीन संस्कृति में सूर्य की तरह चन्द्रमा का भी बहुत महत्त्व माना गया है। कुछ ग्रन्थों में तो सूर्य से भी अधिक चन्द्रमा के महत्त्व का वर्णन मिलता है। हम प्रतिदिन सायंकाल में क्षितिज पर झिलमिलाते असंख्य नक्षत्रों के बीच जिस एक शीतल, तेज पुँज को चमकता हुआ देखते हैं। गगन-मण्डल में दिव्य ज्योत्सना के साथ जिसे मुस्कराता देखते हैं, उसे चन्द्रमा कहते हैं । चन्द्रमा सौम्यता का प्रतीक है। चन्द्रमा में शीतलता समाई हुई है । चन्द्रमा अपनी निर्मल

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