Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 125
________________ * चौथा फल : सुपात्रदान * * १२१ * भाव से दान देते हैं ? परन्तु मैं अभागा हूँ। क्या कर सकता हूँ? मेरे पास कुछ भी द्रव्य नहीं है। अगर द्रव्य होता तो मैं भी दान देता।' कई बार मनुष्य के हृदय में दान देने की भावना जागती है परन्तु वह उस भावना को दबा देता है। किसी समय तो वह अपने मन को यों मना लेता है जब मुझसे इतने बड़े-बड़े धनिक दुनिया में पड़े हैं वे सब तो दान नहीं देते, मैं तो इनके सामने तुच्छ हूँ। मैं अपनी थोड़ी-सी पूँजी में से कैसे दान दे सकूँगा? असल में देखा जाता है कि धनिक लोगों के पास प्रचुर धन साधन आदि होते हैं। इसलिए उनकी उन पर ममता-मूर्छा भी उतनी ही अधिक होती है, अपने हृदय को समझाकर दान देने का निर्णय करने में भी उतनी ही देर लगती है जबकि निर्धन को अपनी थोड़ी-सी पूँजी या साधनों पर ममता-मूर्छा तो होती है, मगर उसमें अपनी दान की शक्ति का गौरव जगाने पर तथा दान लाभ समझने पर वह झटपट निर्णय पर आ जाता है, शीघ्र ही दान देने के लिए तैयार हो जाता है। ___ यही बात हुई। सेठ ने समझाया-“चारुमति ! तू भी दान दिया कर। तेरे पास जो भी है, उसमें से तू मुनिवरों को दान दे सकता है। सुपात्रदान का फल बहुत बड़ा होता है।" परन्तु वह कहने लगा-“सेठानी ! मेरे पास तो रोजाना खाने-पीने जितना ही होता है। बचता कुछ भी नहीं; फिर मैं मुनिवरों को कैसे दान दे सकता हूँ।" __एक बार अभयंकर सेठ चारुमति को अपने साथ गुरु-दर्शन के लिए उपाश्रय में ले गया। वहाँ मुनिवर ने उससे कहा-"भाई ! दान, शील, तप, भावना, ये चार धर्म के अंग हैं। इनमें से तेरे पास सभी शक्तियाँ हैं। तू भी यथाशक्ति धर्माचरणं कर सकता है, सुपात्रदान कर सकता है, दिन-प्रतिदिन दिया हुआ सुपात्रदान अनन्त गुणा बन जाता है।" गुरुदेव यह कह रहे थे कि एक व्यक्ति गुरुदेव से कुछ प्रत्याख्यान (त्याग) करने के लिए आया। गुरुदेव ने उसे प्रत्याख्यान कराया। तब चारुमति ने पूछा"भगवन् ! इस प्रकार के प्रत्याख्यान से भी कुछ धर्म होता है ?" गुरुदेव बोले"हाँ भाई ! इस प्रकार के प्रत्याख्यान करने से भी धर्म होता है।" यह सुनकर चारुमति ने कहा-"भगवन् ! आज़ मुझे भी उपवास का प्रत्याख्यान करा दीजिए।" इस प्रकार गुरुदेव से उपवास का नियम करके घर आया। सोचा-'आज साधु मुनिराज पधारें तो मैं अपने भोजन में से उन्हें देकर प्रतिलाभित होऊँ।' सेठ के यहाँ से उसे प्रतिदिन खाने के लिए भोजन मिलता था। आज उपवास के कारण उसने वह भोजन बचाकर रखा। संयोगवश एक मुनिराज भिक्षा के लिए पधार रहे थे। उन्हें विनती करके वह घर लाया और अत्यन्त उत्कट भाव से जो भोजन सेठ

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