Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 128
________________ * १२४ * . * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * की विशेषता रही है कि गुणों को महत्त्व दिया जाता है। ‘रघुवंश महाकाव्यम्' में महाकवि कालिदास ने कहा “पदं हि सर्वत्र गुणैर्निधीयते।" । -गुण अपना सर्वत्र प्रभाव जमा लेते हैं। “गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः।" -गुणों से आकृष्ट सम्पदाएँ गुणी के पास अपने आप आ जाती हैं। “गुरुतां नयन्ति हि गुणा न संहतिः।" -गुण ही मनुष्य को गुरुता देते हैं, समूह नहीं। चाणक्य नीति में कहा है “गुणैः भूषयते रूपम्।” -गुण से ही रूप की शोभा होती है। साधक को गुणानुरागी होना उतना ही आवश्यक है, जितना सूर्योदय होना। आत्म-कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए जीवन को सद्गुणों से युक्त होना अत्यावश्यक है। ___ इसलिए गुणों के प्रति अनुराग होना तो सर्वश्रेष्ठ कार्य है। महाकवि शैक्सपियर ने कहा है . “Virtue alone is happiness in the world.”. -केवल सद्गुण ही वसुन्धरा पर सुख है। सद्गुणों का संचय करना और दुर्गुणों का त्याग करना इन्सान का मूल उद्देश्य होना चाहिए। आचार्य सोमप्रभसरि ने मानवरूपी वृक्ष का पाँचवाँ गुण गुणानुराग वर्णित किया है। सोना हजार वर्ष तक भी कीचड़ में पड़ा रहे तब भी अपने गुण का परित्याग नहीं करता। चकमक पत्थर कितने समय तक ही पानी में पड़ा रहे तब भी अपनी उष्णता को समाप्त नहीं करता। इसी प्रकार गुणी व्यक्ति कहीं भी रहे, वह सद्गुणों का संचय करना नहीं छोड़ता। गुणानुरागी व्यक्ति की ओर ही गुण आकृष्ट होते हैं और उसकी आत्मा को दीप्तिमान करते हैं। कहा भी है “विवेकिनमनुप्राप्ता गुणाः यान्ति मनोज्ञताम्। सुतरां रत्नमाभाति चामीकरनियोजितम्॥" -जिस प्रकार स्वर्णे जटित रत्न अत्यन्त सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार विवेकी मानव को पाकर गण सुन्दरता को प्राप्त होते हैं। निर्गण का महल नहीं होता है।

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