Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 139
________________ छठा फल : श्रुतिरागमस्य : आगम-श्रमण १३५ * " जो जीव के स्वरूप को जानता है तथा अजीव के स्वरूप को भी जानता है, इस प्रकार जीव और अजीव के स्वरूप को जानने वाला वह साधक निश्चय ही संयम के स्वरूप को जान सकेगा।" " जब आत्मा जीव और अजीव इन दोनों के स्वरूप को जान लेता है, तब सभी जीवों की बहुत भेदों वाली नरक तिर्यंच आदि नानाविध गति को भी जान लेता है ।" " जब सभी जीवों की बहुत भेदों वाली नरक तिर्यंच आदि नानाविध गति को जान लेता है, तब पुण्य और पाप को तथा बन्ध और मोक्ष को भी जान लेता है । " " " जब पुण्य और पाप को तथा बन्ध और मोक्ष को जान लेता है, तब देव-सम्बन्धी और मनुष्य - सम्बन्धी कामभोग है, उसकी असारता को समझकर उन्हें छोड़ देता है । " " जब जो देव और मनुष्य-सम्बन्धी कामभोग है, उसकी असारता को समझकर उन्हें छोड़ देता है, तब राग-द्वेष कषायरूप आभ्यंतर और माता-पिता तथा सम्पत्ति रूप बाह्य संयोगों को छोड़ देता है । " " जब आभ्यंतर और बाह्य संयोगों को छोड़ देता है, तब द्रव्य और भाव से मुण्डित होकर अनगार वृत्ति को ग्रहण करता है, तब उत्कृष्ट और सर्वश्रेष्ठ संवर धर्म को प्राप्त करता है । " " जब उत्कृष्ट और प्रधान संवर धर्म को प्राप्त करता है, तब आत्मा के मिथ्यात्व से उपार्जित किये हुए कर्मरज को झाड़ देता है । " " जब आत्मा के मिथ्यात्व परिणाम द्वारा उपार्जित किये हुए कर्मरूपी रज को झाड़ देता है, तब सभी पदार्थों को जानने वाले केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है । " " " जब सभी पदार्थों को जानने वाला केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है, तब राग-द्वेष का विजेता केवलज्ञानी होकर लोक और अलोक के स्वरूप को जान लेता है । " " जब राग-द्वेष का विजेता केवलज्ञानी होकर लोक और अलोक को जान लेता है, तब कर्मरूपी रज से रहित होकर और समस्त कर्मों का क्षय करके मोक्ष चला जाता है, सिद्ध, बुद्ध निरंजन हो जाता है । "

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