Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 142
________________ १३८ पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * मध्याह्न काल हुआ तब भी उस वृक्ष की छाया ढली नहीं, जैसी सुबह थी वैसी ही स्थिर रही। यह देखकर मुनियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। दोनों एक-दूसरे से पूछने लगे-“क्या यह आपकी तपोलब्धि का प्रभाव है ?" दोनों ही क्रमशः वहाँ से हटे, तब भी छाया स्थिर रही। उन्हें बड़ा कुतूहल हुआ। भगवान के पास आये और पूछा तो भगवान महावीर ने बताया राजा समुद्रविजय के आज से बहुत समय पहले की बात है । सोरियपुर में शासन में यज्ञदत्त तापस रहते थे। वे एक दिन पूर्वाह्न में अशोक - वृक्ष के नीचे अपने नन्हे शिशु नारद को सुलाकर खेत में धान्य कण चुनने चले गये। सूर्य पूर्व से पश्चिम की ओर ढलने लगा तो बालक पर सूर्य की तेज किरणें गिरने लगीं । तब उस समय वैश्रमण जाति के जृम्भक देव उधर से निकले । वृक्ष की छाया में एक तेजस्वी शिशु को अकेला सोया देखकर वे वहाँ रुक गये। बालक के प्रति उनके हृदय में सहज ही स्नेह उमड़ आया । जब अवधिज्ञान लगा देखा तो पता चला, यह शिशु हमारे जृम्भक देवनिकाय से व्यवकर ही यहाँ आया है तो एक प्रकार से हमारी विरादरी का ही है। इसलिए देवताओं ने वृक्ष की छाया को स्थिर कर दिया, बालक की देह पर अब छाया स्थिर हो गई। तब से इस वृक्ष की छाया स्थिर है। बाद में बालक नारद बड़ा हुआ। माता-पिता ने उसे विद्याएँ पढ़ाईं। गुरु कृपा से नारद ने अनेक प्रकार की विद्याएँ हस्तगत कर लीं। विद्याबल से उसे सोने की कुण्ड (कांचन कुण्डिका) और मणिपादुका ( खड़ाऊँ) भी प्राप्त हो गई जिसके बल से वह पक्षी की भाँति ऊँचे आकाश में मनचाही उड़ानें भरने लगा । एक बार देवर्षि नारद गये। वहाँ वासुदेव श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा - " शौच क्या है ?” नारद इसका उत्तर न दे सके। वे समाधान के लिए महाविदेह-क्षेत्र पहुँचे । वहाँ देखा-सीमंधर तीर्थंकर से युगबाहु वासुदेव भी यही प्रश्न पूछ रहे थे तो प्रभु ने कहा - " सत्य ही शौच है । " नारद इस समाधान को पाकर पुनः द्वारिका आए और वासुदेव श्रीकृष्ण से कहा - " सत्य ही शौच है ।" परन्तु वासुदेव ने प्रतिप्रश्न किया - " सत्य क्या है ?" नारद इस प्रश्न का भी उत्तर न दे सके। संशयलीन नारद इस पर गहरे चिन्तन में डूब गये। इस पर ऊहापोह करते-करते उन्हें जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त हो गया। वे स्वयं प्रतिबोध पाकर प्रत्येकबुद्ध हो गये ।

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