Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 129
________________ * पाँचवाँ फल गुणानुराग १२५ * जैसे- टेसू का फूल देखने में बड़ा सुन्दर आकर्षक लगता है किन्तु लोगों के द्वारा वह पसन्द नहीं किया जाता जबकि कुरूपता को देखा तो उठा ले गया और दूसरे दिन एक नवीन चित्र तैयार करके पुनः चौराहे पर लगा दिया और उसमें लिख दिया कि इसमें जो गुण हों उन्हें पर्ची पर लिखकर रख देवें, इस चित्र पर हाथ न लगावें, तो किसी ने चित्र के गुणों को भी नहीं लिखा और न चित्र पर हाथ ही लगाया। इस उदाहरण से शिक्षा मिलती है कि लोगों की दृष्टि छिन्द्रान्वेषी है, दोषों को देखने का प्रयत्न करते हैं, किन्तु गुणों पर दृष्टि नहीं डालते इसीलिए संसार - सागर में गोते खाते रहते हैं। छिद्रान्वेषण मत करो - कविकुल भूषण पूज्यपाद श्री त्रिलोक ऋषि जी महाराज अपने एक कवित्त के द्वारा प्राणी को सदुपदेश देते हैं कि तू औरों की निन्दा मत कर, औरों के दोष मत देख। अगर देखना ही है तो अपने स्वयं के दोष देख । जिससे आत्म-शुद्धि हो सके। इसे काव्य में कहा है “छिद्र पर देख निंदा करें केम, छोड़ के छिद्र सुगुण लहीजे । बंबूल देख के काँटा ग्रहे मत, छाया ते शीतल होय सहीजे ॥ तुच्छ असार आहार है धेनु को, क्षीर विगय तामें सार कहीजे । त्रिलोक कहत स्वछद्र को टालत, काहे को अन्य का छिद्र ग्रहीजे ॥” - हें प्राणी ! तू दूसरों का छिद्रान्वेषण क्यों करता है ? पर-दोष दर्शन करके उनकी निन्दा करने से तुझे कौन-सा लाभ होने वाला है? कोई नहीं, अतः दूसरों के दोष देखना छोड़कर उनमें जो गुण हैं केवल उन्हें ही ग्रहण करना सीख । बबूल का पेड़ तेरे समक्ष है, तो क्या यह आवश्यक है तू उसमें से काँटे ग्रहण करे ही? नहीं, काँटों को छूने की आवश्यकता नहीं है । असह्य धूप है, पैरों में जूते नहीं हैं तथा पास में कोई अन्य वृक्ष नहीं है तो दो घड़ी तू बबूल की छाया में बैठकर विश्राम कर। शूलदरख्त पर हैं तो रहने दे। छाया में तो शूल नहीं हैं ? तू केवल छाया को ही क्यों नहीं देखता ? काँटों को किसलिए देखे जा रहा है ? बबूल के शूलरूपी छिद्रों को देखने से मुझे क्या लाभ है ? और न देखे तो कौन-सी हानि है ? फिर व्यर्थ का कार्य करना ही किसलिये ? उसे न करना ही अच्छा है। एक कवि ने बहुत सुन्दर कहा है " दोष पराया देख के, चले हसंत- हसंत । अपने याद न आवही, जिनका आदि न अंत ॥”

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