Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 97
________________ दूसरा फल: गुरु- पर्युपास्ति : गुरु-सेवा ९३ * ज्योत्सना के द्वारा अन्धकाराच्छन्न सृष्टि के कण-कण को आलोकित कर देता है, लाखों, करोड़ों कुमुदिनियों को खिला देता है, सृष्टि की वनौषधियों में रस उँडेल देता है। इसलिए वह औषधिपति कहलाता है। चन्द्रमा प्रकृति के प्रत्येक अंग को बारीकी से देखता है और उसके माध्यम से जन-जीवन को कुछ नई सृजनात्मक प्रेरणा देता है। उसका अध्यात्म पक्ष उभारकर एक नई तस्वीर हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। जिस प्रकार चन्द्रमा शीतलता प्रदान करता है। उसी प्रकार गुरु अपने शिष्य को संसार ताप से संतप्त हुए को शीतलता प्रदान करता है। शिष्य में सौम्यता प्रदान करता है । जीवन में नई स्फूर्ति भरता है । चन्द्रमा की भाँति अपने जीवन को आदर्शमय एवं शांति प्रदाता बनाओ । गुरु पति-पति का अर्थ है - पत रखने वाला। पति अपनी पत्नी का हर तरह से ध्यान रखता है। पत्नी की प्रत्येक बात को पूर्ण करता है और दुःख-सुख के समय में साथ देता है। पति दो प्रकार का है - द्रव्यपति और भावपति। जो चर्ममय शरीर से युक्त, स्त्री- पर्याय से युक्त, ऐसे शरीर का जो मालिक है, स्वामी है, वह द्रव्यपति है। जो `सर्वशक्ति - सम्पन्न है, अनन्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र बल से युक्त है, जो ईश्वर का रूप है, वह भावपति है । इसलिए पति को परमेश्वर कहा है। एक बाह्य पति है, दूसरा भीतर का पति है। बाह्य पति शरीर की देखभाल करता है, शरीर की रक्षा करता है, अपनी पत्नी के प्रत्येक कार्य में सहायता करता है। भीतर का पति सदैव रक्षा करता है, इस लोक एवं परलोक में साथ देता है। बाहर का पति तो साथ छोड़ सकता है या साथ छोड़ देता है किन्तु भीतर का पति परमेश्वर कभी भी साथ नहीं छोड़ सकता। वह सदैव अंग-संग बना रहता है। रोम-रोम में समाया हुआ है । इसलिए कवि ने भी कहा है “मेरा पीऊ मुझमें बसे, जैसे दूध में घीव । रोम-रोम में रम रह्या, आतम ज्योत सदीव ॥” -जैसे दूध में घी विद्यमान है, ऐसे ही मेरे शरीर में ज्योति - पुँज, पति परमेश्वर विद्यमान है। वास्तव में पति वही है, जो पत्नी की इज्जत को सुरक्षित रखता है । इसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्य का पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं और गुरु पति की भाँति शिष्य का भरण-पोषण करते हैं । ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय, तप, जप आदि में लगाकर आत्म-ज्योति का दिग्दर्शन करवाते हैं। शिष्य को सर्वगुण सम्पन्न बनाते हैं। गुरु इन्द्र - जैन संस्कृति में इन्द्र एक पद है और वह भौतिक शक्तियों का सर्वोत्कृष्ट प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इन्द्र शब्द इतना प्रसिद्ध है कि इसका

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