Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 122
________________ * ११८ * . * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * करने के लिए एक-एक सूर्य है अथवा प्रत्येक पपीहे के लिए या प्रत्येक लता और गुल्म के लिए एक-एक भेद्य है। ऐसा तो नहीं है ये तो एक-एक ही हजारों लाखों की आवश्यकता पूर्ति करते हैं। मनुष्य अगर थोड़ा-सा शारीरिक और आर्थिक कष्ट उठाकर भी दूसरों का कष्ट दूर करे तो उसे एक प्रकार का अनिर्वचनीय आनन्द प्राप्त होता है। दूसरों को खिलाकर खाने में अथवा भूखे रह जाने में भी आत्म-तृप्ति का अनुभव होता है। इसके विपरीत, दूसरों को भूखे देखकर भी स्वयं अपना पेट भर लेने में आत्म-ग्लानि होती है। दूसरों को सुखी करने से मनुष्य को जो कृतकृत्यता की स्वयं अनुभूति होती है वह अन्य उपाय से दुर्लभ है। जो है, वही दो.. जो वस्तु मनुष्य के पास है उससे वह दूसरों को भी लाभ उठाने दे। यदि उसके पास रुपये नहीं हैं तो अन्य साधन तो हो ही सकते हैं, जिनसे आप दूसरों की-कष्ट-पीड़ितों की, अपने से दुर्बल प्राणियों की सहायता कर सकते हैं। दान के बहुत-से साधन हैं। . . .' महाभारत में एक सुन्दर प्रसंग इस सम्बन्ध में अंकित है-द्रोणाचार्य जब अपनी दीन अवस्था में परशुराम से कुछ माँगने महेन्द्र पर्वत पर गये तो त्यागी परशुराम ने कहा-"मैं तो अपनी सारी सांसारिक विभूतियाँ दान में दे चुका हूँ, अतएव तुम्हें धन देने में असमर्थ हूँ। मेरे पास विद्या ही शेष है, तुम चाहो तो उसे ले सकते हो। द्रोण ने विद्यादान लेना स्वीकार किया। इसी प्रकार देने और लेने की कितनी ही वस्तुएँ होती हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपके पास महादानी कर्ण के कवच-कुण्डल हों तभी आप दान करने का साहस करें। कवच-कुण्डल न सही सुपात्र को एक समय का भोजन और प्यासे को पानी ही दे देते हैं तो दान का लाभ अवश्य मिलेगा, किसी को अपना बना बनाया घर नहीं दे सकते तो संकट में शरण तो दे ही सकते हैं। किसी को और कुछ नहीं तो शक्ति, सहयोग, बौद्धिक परामर्श, सहानुभूति, आश्वासन, शुभ कामना, आशीर्वाद, सान्त्वना ही है तो वह दान की कोटि में आ सकता है। यह तो एक भ्रम है कि किसी को देने से कमी हो जायेगी। दान देने से लक्ष्मी बढ़ती है, ज्ञान देने से ज्ञान की वृद्धि होती है, दान और परोपकार के पीछे लोगों की शुभ कामनाएँ, हार्दिक शुभाशीर्वाद और लोक बल रहता है। परमार्थ से तो पुरुषार्थ ही प्रकट होता है। संवाद के रूप में एक रूपक प्रस्तुत करता हूँ। सर कार देने वाला सौ गुना पाता है ... - धरती बोली-"वृक्षो ! मैं तुम्हें खाद-पानी देती हूँ, रस देती हूँ, उससे अपने

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