Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 118
________________ * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * इस प्रकार ये सब व्याख्याएँ तत्त्वार्थसूत्रकार के लक्षण को केन्द्र बनाकर उसके इर्द-गिर्द घूमने वाली व्याख्याएँ हैं। भारतीय संस्कृति के एक मननशील मेधावी मनीषी ने कहा ११४ "देवै सो देवता ।" - जो दूसरों को देता है, वह देव है। अर्थात् जो अर्पण करता है, वह देवता है, कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र जी महाराज ने 'योगशास्त्र' में दान का लक्षण बताते हुए कहा है " दानं पात्रेषु द्रव्य विश्राणनम्।” इस लक्षण के अनुसार जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट जो भी दान के सुपात्र एवं पात्र हैं, उन्हें अपनी वस्तु देना दान कहलाता है। इसी प्रकार का एक लक्षण आचार्य हरिभद्रसूरि ने 'तत्त्वार्थसूत्र हरिभद्रीया वृत्ति' में किया है "दानं सर्वेष्येतेषु स्वस्याहारादेरतिसर्जन लक्षणम् ।” -सभी प्रकार के इन पात्रों में अपने आहार आदि का त्याग करनाहै। यह लक्षण भी पूर्वोक्त लक्षण से मिलता-जुलता है। -देना दान प्रश्नव्याकरणसूत्र की टीका एवं प्रवचनसारोद्धार में दान का लक्षण यों किया है" लब्धस्यान्नस्य ग्लानादिभ्योवितरणे।”. 15 प्राप्त अन्न को ग्लान, रोगी, वृद्ध, अपाहिज और निर्धनों में वितरण करना दान है। जो भी व्यक्ति दान के लिए पात्र है, उसे अपनी वस्तु प्रेमभाव से दे देना दान है। आद्य शंकराचार्य ने दान का अर्थ किया है - " दानं संविभागः । " दान का अर्थ है-सम्यक् वितरण-यथार्थ विभाग अथवा संगत विभाग । मानव-जीवन की श्रेष्ठता दान रूप धर्म का आचरण करने में ही है। ऐसा न होने पर उसमें तथा एक पशु में कोई भी अन्तर दिखाई नहीं देगा। उदर-पूर्ति तो पशु भी कर लेते हैं और मानव भी करें तो उसमें उसकी क्या महत्ता है ? इसलिए प्रत्येक ज्ञानवान और विवेकी मानव को इस पशु वृत्ति से अपने आप को ऊँचा उठाकर दानधर्म कोगीकार करना चाहिए तथा अपने जीवन को सार्थक करना चाहिए। सद्गृहस्थ का सर्वश्रेष्ठ कर्त्तव्य दान देना ही हैं। जिस मानव के हृदय में दान देने की भावना नहीं होती उसका हृदय बंजर भूमि के समान गुणहीन होता है। दान के गुण कहाँ तक गिनाए जायें, एक श्लोक में कहा गया है

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