Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 92
________________ * ८८ * . * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * गुरु किसान-जैसे किसान अन्न की फसल को प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम भूमि की शुद्धि करता है और फिर उसमें बीज बो देने पर भी रात-दिन सजग रहकर उनकी सुरक्षा बड़ी सावधानी और परिश्रम से करने के बाद ही अन्न को प्राप्त करता है। अर्थात् जिस प्रकार किसान को मिट्टी की पहचान होती है कि इस भूमि में अमुक फसल अच्छी तरह उगाई जा सकती है। उसी प्रकार गुरु को शिष्य की पात्रता के सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान होता है और वह उन शिष्यों से उनकी योग्यता के अनुसार काम लेता है। जिस प्रकार किसान बंजर भूमि में खेती नहीं करता। इसी प्रकार गुरुवर्य कुशिष्य को न दीक्षित करता है और न ज्ञान दान देता है। ___ गुरु लुहार-जिस प्रकार लुहार लोहे को तपाकर घन से पीटकर स्वेच्छानुसार. आकृति प्रदान करता है। उसी प्रकार गुरु शिष्य को. साधना की अग्नि में तपाकर उसे वास्तविक साधुता प्रदान करता है। गुरु शिल्पकार-एक मन्दिर में बड़ी भव्य प्रतिमा थी। प्रतिदिन प्रातः-सायं सैकड़ों भक्त आकर उसके चरणों में फल-फूल, नैवेद्य आदि चढ़ाया करते थे और प्रतिमा के सामने ही खड़े हुए एक खंभे से टिककर बैठते और प्रार्थना करते थे। यह सब देखकर खंभे को बड़ा दुःख होता था। पर करता क्या? क्रोध से जल-भुनकर रह जाता। आखिर एक दिन दोपहर को जब मन्दिर सुनसान था, खंभा प्रतिमा से बोला “यह क्या बात है? आखिर हम दोनों एक ही खान से निकले हैं, फिर भी सैकड़ों व्यक्ति आकर तुम्हारे चरणों में मस्तक झुकाते हैं, चढ़ावा चढ़ाते हैं और तुम्हारी पूजा करते हैं। मेरी ओर कोई दृष्टिपात भी नहीं करता, उल्टे मेरी ओर पीठ करके मुझसे टिककर बैठते हैं। यह मुझसे सहन नहीं होता।" खंभे की बात सुनकर प्रतिमा मुस्कराई और दयार्द्र होकर बोली-“भाई ! तुम्हारा कथन सर्वथा सत्य है। हम दोनों का जन्म-स्थान एक ही है और दोनों के शरीर का निर्माण भी एक-सा ही हुआ है। किन्तु आज जो अन्तर तुम हमारे बीच देख रहे हो तथा मेरी पूजा होती देखकर दुःख का अनुभव कर रहे हो, उसका कारण सिर्फ यही है कि मेरे हितैषी शिल्पकार (मूर्तिकार) ने हथोड़े की असंख्य चोटें मुझ पर की हैं। नाना प्रकार से मुझे तराशा है और मेरे एक-एक अंग को टाँची मार-मारकर सुधारने का प्रयत्न किया है। मैंने वे चोटें हँसते हुए सहन की, कभी विरोध नहीं किया, एक आह तक जबान से नहीं निकाली। बस इसी का परिणाम है कि आज मैं पूजा के योग्य बनी हूँ।"

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