Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 70
________________ * ६६ * * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * “वेयावच्चेणं जीवे तित्थयरनामगोत्तं कम्मं निबन्धइ।” अर्थात् वैयावृत्य की सम्यक् आराधना से जीव तीर्थंकरपद को प्राप्त कर लेता है। सेवा धर्म परम गहन-सेवा जितनी महान् है, पावन है, सुखदायक है तथा समुज्जवता का पावन स्रोत है, इसकी आराधना उतनी ही कठिन है। साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी सेवा धर्म के रहस्य को, इसकी अलौकिकता को समझ नहीं सकते। सेवा धर्म की महिमा के मर्मज्ञं, पारखी, स्वनाम धन्य श्री भर्तृहरि ने कितनी सुन्दर भाषा में कहा है “सेवाधर्मः परमगहनो, योगिनामप्यगम्यः।" -सेवा धर्म परम गहन है, इसकी गरिमा को समझना कठिन है, योगिजनों के लिए भी अगम्य है, पहुँच से परे है। ___आध्यात्मिक जगत् में सेवा धर्म का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है। सेवा को ही वैयावृत्य भी कहते हैं। वैयावृत्य एक प्रकार का नहीं होता, इसके अनेकों विकल्प उपलब्ध होते हैं। 'स्थानांगसूत्र' में १० प्रकार की वैयावृत्य कही गई है(१) आचार्य की वैयावृत्य, (२) उपाध्याय की वैयावृत्य, इसी प्रकार (३) स्थविर या वृद्ध की वैयावृत्य, (४) तपस्वी, (५) ग्लान, (६) नव-दीक्षित, (७) कुल (एकं गुरु का शिष्य-समुदाय), (८) गण (गुरु-शिष्य परिवारों का समुदाय), (९) संघ (गणों का समूह), (१०) साधर्मिक (समान धर्म वाले) सन्तों की वैयावृत्य। ___ "भव्य जीव जिनकी प्रेरणा से व्रतों का आचरण करते हैं। इनका वैयावृत्य करना आचार्य का वैयावृत्य है।" “जो मुनि व्रत, शील और भावना के आधार हैं और जिनके पास जाकर आत्म-कल्याण के लिए साधुगण श्रुत का अध्ययन करते हैं, वे उपाध्याय कहे जाते हैं।" ____ “जो श्रुतज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने में तत्पर और व्रतों की भावना में निपुण हैं, वे शैक्ष कहलाते हैं। अर्थात् जिन्होंने अभी-अभी महाव्रतों को ग्रहण किया है, जिसे नवदीक्षित भी कहते हैं।" "महोपवास यानि 'मासोपवास' आदि लम्बे-लम्बे तप करने वाले साधु तपस्वी कहे जाते हैं।" "जिनका शरीर रोग आदि से आक्रान्त है, वे मुनि, साधु, ग्लान कहे जाते हैं।" “स्थविर साधुओं की संगति, परम्परा को 'गण' कहा जाता है।” “दीक्षा देने वाले आचार्य की शिष्य-परम्परा को 'कुल' और चार (साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका) प्रकार के श्रमण-समूह को संघ कहा जाता है।" साधर्मी पर आपत्ति आने पर उस संकट का प्रतिकार करना साधर्मिक की सेवा है। सेवा धर्म की आराधना करने वाले अनेकानेक महापुरुष हो चुके हैं।

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