Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 33
________________ मानव-जन्मरूपी वृक्ष के छह फल प्रथम फल : जिनेन्द्र पूजा ) "जिनेन्द्र पूजा गुरु पर्युपास्ति, सत्त्वानुकम्पा शुभपात्रदानम्। गुणानुरागः श्रुतिरागमस्य, नृजन्मवृक्षस्य फलान्यमूनि॥" .. -सूक्ति मुक्तावली आचार्य श्री सोमप्रभसूरि जी ने 'सिन्दूरप्रकरण'-अपरनाम-सूक्ति मुक्तावली में मानवरूपी वृक्ष के छह फलों की अतिसुन्दर एवं सुविस्तृत चर्चा की है और इन पर प्रकाश डालते हुए फरमा रहे हैं-भव्यजनो ! अगर आप जीवन को ऊँचा उठाना चाहते हो तो, जीवन में इन छह पत्रों की आराधना करो जिससे मानवरूपी वृक्ष हरा-भरा हो सकेगा। प्रथम फल = जिनेन्द्र पूजा-भगवान के प्रति असीम श्रद्धा-भक्ति रखते हुए भक्त जो भी पूजा-पाठ करता है, वह मनुष्य-जन्म का पहला फल है। ____ जिनेन्द्र पूजा में तीन शब्द हैं-जिन + इन्द्र + पूजा = जिनेन्द्र पूजा। जिन कौन ? 'जिन' शब्द की व्याख्या करते हुए कहा गया है . “जयति राग-द्वेषादि शत्रुन् इति जिनः ?" . -जिन्होंने राग-द्वेषादि आन्तरिक शत्रुओं को जीत लिया, उसे जिन कहते हैं। आचार्य श्री मलयगिरि ने 'जिन' शब्द की व्याख्या करते हुए बताया है___ “राग-द्वेष-कषायेन्द्रिय-परीषहोपसर्गाष्ट प्रकारक कर्म जेतृत्वात् जिनाः।" -आवश्यक मलयगिरि -राग-द्वेष-कषाय पाँच इन्द्रिय, वाईस उपसर्ग और आठ प्रकार के कर्मों को जीतने-इन पर अपना स्वामित्व स्थापित करने के कारण 'जिन' कहलाते हैं। राग और द्वेष के कारण ही कर्मों की उत्पत्ति है। आत्मा के शत्रुओं में प्रमुखतम् हैं राग और द्वेष। भगवान महावीर ‘उत्तराध्ययनसूत्र' में फरमाते हैं

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