Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 54
________________ * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * वचन और काया में इठलाती हुई कलकल-छलछल करती हुई प्रभावित होती है, तव मानव के जीवन में स्नेह सद्भावना की हरियाली लहलहाने लगती है, अहिंसा से अनुकम्पा के अंकुर फूटने लगते हैं, दया के सुरभित सुमन खिलने लगते हैं और विश्व-मैत्री के मधुर फल जन-जन के मन को आकर्षित करने लगते हैं। अहिंसा से जीवन रमणीय एवं दर्शनीय बनता है। ___अहिंसा एक अमोघ शक्ति है। अहिंसा एक विराट् शक्ति है, जिसके सम्मुख संसार की सभी संहारक शक्तियाँ कुण्ठित हो जाती हैं। अहिंसा संस्कृति का प्राण है, धर्म और दर्शन का मूल आधार है। अहिंसा अत्यन्त हितकारी है, वह सभी के साथ मैत्री सम्बन्ध संस्थापित करती है, आत्मा साम्य की विराट् दृष्टि प्रदान करती है। अहिंसा सभी से उत्तम है। वह ऐसा पावन और पवित्र धर्म है। मानव को अहिंसा का महत्त्व समझकर चाहिए कि "न हिंस्यात् सर्व भूतानि, मैत्रायणगतश्चरेत्। नेदं जीवितमासाद्य वैरं कुर्वीत् केनचित्॥" -महाभारत, शान्ति पर्व अर्थात् वह किसी भी प्राणी की हिंसा न करे, क्योंकि जैसे हमें अपने प्राण प्यारे हैं, उसी प्रकार सभी प्राणियों को अपने प्राण प्यारे हैं। किसी के प्राणों का नाश करना कभी भी धर्म नहीं हो सकता। भयाकुल प्राणी के लिए शरण की प्राप्ति श्रेष्ठ होती है, वैसे ही प्राणियों के लिए भगवती अहिंसा की शरण विशेष रूप से हितकर है। यह पूजा का पहला फूल है, जिसकी हम संक्षेप में चर्चा कर आये हैं। अब दूसरे फूल-सत्य की चर्चा करनी है। २. सत्य जो शब्द सज्जनता का पावन संदेश प्रदान करता है, सौजन्य भावना को उबुद्ध करता है और जो यथार्थ व्यवहार का पुनीत है, वह सत्य है। आचार्य शान्तिसूरि जी ‘श्री उत्तराध्ययनसूत्र की टीका' में फरमा रहे हैं _ “सद्भ्यो हितं सत्यम्।” -जिस शब्द के प्रयोग से जन-जन का हित होता है, कल्याण होता है, आध्यात्मिक अभ्युदय होता है, वह सत्य है। 'गीता' में श्रीकृष्ण ने कहा है ... "नासतो विद्यते भावो, ना भावो विद्यते सतः।"

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