Book Title: Nyayavinishchay Vivaranam Part 1
Author(s): Vadirajsuri, Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ प्रस्तावना उक्त शीनी उत्तर क्या कहे जा सका है ( व्य है) इसका उत्तर जन न देते हैं.... ४ स्याद् ( हो सकता है) स्थाएट कहा जा सकता (वनस्य) नहीं, स्याद् अन्नमय है। ५ 'स्पादस्ति' क्या यह समस्या है? नहीं, 'स्माष्ट्र अस्ति अवतन्य है। ६ 'स्था नास्ति' क्या मह तय है ? नहीं, 'स्वाद नास्ति' अबक्तव्य है। ७ 'स्पाय भस्ति च भास्ति च *या यह दव्य है ? नहीं 'स्यादस्ति च नास्ति व अन्धकम्य है। गनों के मिदाने से मालूम होमा कि सैनों ने संजय के पहिलेकाले नीन पायो दिन और उत्तर धोनी) को मना करके अपने सादाद की ग्रह भंगियाँ बनाई है और उसके चौथे वाक्य 'न है और न नहीं है को जोरकर 'स्थादर भी प्रवक्तव्य है, यह माना भंग तैयार कर अपनी सहभगी पूरी की।...... र निसा(1) नाम करना जो कि संजय का वाद था, उसी को संजय के अनुयायियों के लुप्त हो जाने पर जैनों में अपना लिया और उसकी चतुर्भगीय को सप्तभंगी में परिणत कर दिया। राहुल जी ने उक्त सन्दर्भ में सप्तभंगी और पादाद के स्वरूप को न समझाकर केवल साम्य से एक नये मत की मृष्टि की है। यह तो ऐसा ही है जैसे कि शोर से "कमा मुम अमुक इनह गये थे? यह पूछने पर वष्ट कर कि मैं नहीं कह सकता किया था" और जज शम्य प्रमाण मे यह सिद्ध कर है कि चोर अमुक जगह गया था। नन साम्य देवकर यह कहना कि मन का फैसला चार के स्थान से निकला हैं। संजयलहि पुत्र के दर्शन का विवेचन स्वयं सहखी ने (पृ. ४९१) इन पानी में किया है"यदि आप पू.-'क्या परकोका है ? तो यदि मैं समझता हो कि परलोक है तो आपको थकला कि परलोक है। मैं ऐसा भी नहीं फहता, वैसा भी नहीं कहता, दूसरी तरफ से भी नहीं कहना 1 मैं यह भी मही कहता कि वह नहीं है। मैं यह भी नहीं कहा कि वह नहीं नहीं है । परलोक नहीं है । परलोक नहीं नहीं है। परलोक है भी और नहीं भी है। परलोक नई और न नहीं है। संजय के परलोक, देवना, कर्मफस और मुधि के सम्बन्ध के ये विचार शतप्रतिशत अनिश्चयवाद के हैं। वह स्पष्ट कहता है कि "यदि मैं जानता हो सो बसा। मंजय को परलोक मुनि आदि के स्वरूप का कुछ भी मिश्चय नहीं था इसलिए उसका गर्भन वकाल राष्ट्रल जी के मानय की सहजचुदि को भ्रम में नहीं रखना चाहता और म कुछ निश्चय कर प्रान्त धारणा की पुष्टि करना नाहना है। जापर्य यह कि संजय शेर अनिश्रयवादी था । बस और संजय-बुद्ध ने "लोक नित्य है, अनित्य है, मिस्य-अभिन्न है, न निस्य न अनित्य है। लोक अम्तवान् है। नहीं है, नहीं है, है ननहीं निर्वाण के याद तथागत होते हैं, नहीं होस', होते नहीं होते, न होतेन नहीं होते; जीप कार से भिन्न है, बीव शरीर से मिल नहीं है। (माध्यमिक वृति पृ. ५४६) हन चौदह वस्तुओं को अन्याकृत कहा है। मनिममनिकाय ( २१२१३) में इनकी संख्या देश है। इसमें आदि के डो प्रश्नों में तीसरा और चौथा विकल्प नहीं गिना गया है। इनके अध्याकृत होने का कारण अद ने मनाया है कि इसके बारे में कहमा सार्यक नहीं, भिक्षुचर्या के लिए उपयोगी नहीं, न यह निर्वेद गिरोध शान्ति या परमज्ञान निर्माण के लिए आवशक है। तात्पर्य यह कि बुद्ध की रधि में इनका सामना मुमुक्षु के लिए आवश्यक नहीं था । दूसरे शब्दों में भी संजय की वरह इसके बारे में कुछ कहकर मानव की सहा बुद्धि को श्रम में मही खासमा थाहने थे औरजभ्रान्त धारणाओं को पुष्ट ही करना चाहते थे। हाँ, संजय जब अपनी शामता श अनिश्चय को साफ साक आम्चों में कह देखा है कि यदि मैं जानता हो सो अता, सम श्रुह अपने ज्ञानने न जानने का उल्लेख न करके उस रहस्य को शिष्यों के लिए अनुपयोगी कमाकर अपमा पीछा चुना लेते हैं। किसी भी शामिक का पक्ष अभी तक असमाहित ही रह जाता है कि इस अध्याक्तता और मंत्रम के अनिश्चयवाद में

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 ... 609