________________
98. पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसबंधेहिं वज्जिदो अप्पा।
सो हं इदि चिंतिज्जो तत्थेव य कुणदि थिरभाव।
s .tic 42
पयडिटिदिअणुभाग- [(पयडि)-(ट्ठिदि)-(अणुभाग)- प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, प्पदेसबंधेहिं (प्पदेस)-(बंध) 3/2] अनुभागबंध और
प्रदेशबंध से वज्जिदो (वज्जिद) 1/1 वि रहित अप्पा (अप्प) 1/1
आत्मा (त) 1/1 सवि (अम्ह) 1/1 स अव्यय
इसप्रकार चिंतिज्जो (चिंतिज्जो) वकृ 1/1 अनि विचार करता हुआ तत्थेव [(तत्थ)+ (एव)] तत्थ (अ)= वहाँ
वहाँ एव (अ) = ही अव्यय
पादपूरक कुणदि (कुण) व 3/1 सक करता है थिरभावं [(थिर) वि-(भाव) 2/1] स्थिर भाव
अन्वय- अप्पा पयडिट्टिदिअणुभागप्पदेसबंधेहिं वज्जिदो सो हं इदि चिंतिज्जो तत्थेव य थिरभावं कुणदि।
अर्थ- (जो) (शुद्ध) आत्मा प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध से रहित (है) वह मैं (हूँ)। (आत्मा) इस प्रकार विचार करता हुआ (अन्तर्मुखी होकर) वहाँ ही अर्थात् ध्यान अवस्था में ही स्थिर भाव करता है। नियमसार (खण्ड-2)
(35)