Book Title: Niyamsara Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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149. आवासएण जुत्तो समणो सो होदि अंतरंगप्पा । आवासयपरिहीणो समणो सो होदि बहिरप्पा ॥
150. अंतरबाहिरजप्पे जो वट्टइ सो हवेइ जप्पेसु जो ण वट्टइ सो उच्चइ
बहिरप्पा | अंतरंगप्पा ॥
151. जो धम्मसुक्कझाणम्हि परिणदो सो वि अंतरंगप्पा । झाणविहीणो समणो बहिरप्पा इदि विजाणीहि ।।
152. पडिकमणपहुदिकिरियं कुव्वंतो णिच्छयस्स चारितं । तेण दु विरागचरिए समणो अब्भुट्ठिदो होदि । ।
153. वयणमयं पडिकमणं वयणमयं पच्चक्खाण नियमं च। आलोयण वयणमयं तं सव्वं जाण सज्झायं ।।
154. जदि सक्कदि कादुं जे पडिकमणादिं करेज्ज झाणमयं । सत्तिविहीणो जा जइ सद्दहणं चेव कायव्वं ॥
155. जिणकहियपरमसुत्ते पडिकमणादिय परीक्खऊण फुडं । मोणव्वएण जोई णियकज्जं साहए णिच्वं ॥
156. णाणाजीवा णाणाकम्मं णाणाविहं हवे लगी। तम्हा वयणविवादं सगपरसमएहिं
वज्जिज्जो ॥
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नियमसार (खण्ड-2)
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