Book Title: Niyamsara Part 02 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy View full book textPage 190
________________ विसेसेण 84 सम्म 168 सव्वं 103, 119 पूर्णरूप से तृतीयार्थक अव्यय सम्यक् प्रकार से पूर्णरूप से द्वितीयार्थक अव्यय शीघ्रता से दीर्घकाल तक सुखपूर्वक द्वितीयार्थक अव्यय सिग्यं 176 90 105 पादपूरक निस्सन्देह निश्चय ही 77, 78, 79,80, 81 92, 93, 161 173, 174 146 नियमसार (खण्ड-2) (183)Page Navigation
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