Book Title: Niyamsara Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 187
________________ 143, 144, 150, 162, 163, 166, 168, 170, 171, 172, 173, 174, 175, 184 78, 80, 81, 180 णवि 97 179, 180, 181 187 93 106, 116, 155 129, 130, 131, 132, 133 सदैव 114 णाम नामक णि णिच्चं सदैव णिच्चसो णिच्छयदो निश्चयपूर्वक पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय णिमित्तं प्रयोजन से द्वितीयार्थक अव्यय णियमा नियमपूर्वक पंचमीअर्थक अव्यय अनिवार्यतः णियमेण निश्चयनय से णिरवसेसेण पूर्णरूप से तृतीयार्थक अव्यय णिव्वियप्पेण निर्विकल्परूप से तृतीयार्थक अव्यय 106 120 159 ___91 121 (180) नियमसार (खण्ड-2)

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