Book Title: Nirgranth Pravachan
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Guru Premsukh Dham

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Page 112
________________ 50000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 0000000000000000000 00000000 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000001 अन्वयार्थ : (गोयम!) हे गौतम! (पुढविकायमइगओ) पृथ्वीकाय में गया हुआ (जीवो) जीव (उक्कोस) उत्कृष्ट (संखाइयं) संख्या से अतीत अर्थात् असंख्य (काल) काल तक (संवसे) रहता है। अतः (समय) समय मात्र का (मा पमायए) प्रमाद मत कर। भावार्थ : हे गौतम! यह जीव पृथ्वी काय में जन्म-मरण को धारण करता हुआ उत्कृष्ट असंख्य काल अर्थात् असंख्य अपसर्पिणि उत्सर्पिणी काल तक को बिताता रहता है। अतः हे मानव देहधारी गौतम! तुझे एक क्षण मात्र की भी गफलत करना उचित नहीं है। मूल : आउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उसंवसे। कालं संखाईयं, समयं गोयम! मा पमायए||६|| तेउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उसंवसे। कालं संखाईयं, समयं गोयम! मा पमायए||७|| वाउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखाईयं, समयं गोयम! मा पमायएllll छाया: अपकायमतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत्। कालं संख्यातीतं, समयं गौतम! मा प्रमादीः।।६।। तेजः कायमतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत्। कालं संख्यातीतं, समयं गौतम! मा प्रमादीः / / 7 / / वायुकायमतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत्। कालं संख्यातीतं, समयं गौतम! मा प्रमादीः / / 8 / / अन्वयार्थ : (गोयम!) हे गौतम! (जीवो) जीव (आउक्कायमइगओ) अपकाया को प्राप्त हुआ (उक्कोस) उत्कृष्ट (संखाईयं) असंख्यात (काल) काल तक (संवसे) रहता है। अतः (समय) समय मात्र का (मा पमायए) प्रमाद मत कर / / 6 / / इसी तरह (तेउक्कायमइगओ) अग्निकाय को प्राप्त हुआ जीव और (वाउकायमइगओ) वायुकाय को प्राप्त हुआ जीव असंख्य काल तक रह जाता है। भावार्थ : हे गौतम! इसी तरह यह आत्मा जल, अग्नि तथा वायुकाय में असंख्य काल तक जन्म मरण को धारण करता रहता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि मानव जन्म मिलना महान कठिन है। अतएव हे गौतम! तुझे धर्म का पालन करने में तनिक भी गाफिल न रहना चाहिए। 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oops 5000000000000000 निर्ग्रन्थ प्रवचन/109 Jain Edacation internauonal For Personal & Private Use Only boooo000000000000 www.jainelibrary.org POP

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