Book Title: Nirgranth Pravachan
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Guru Premsukh Dham

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Page 146
________________ 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oog 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oooooooooope Agoooo0000000000000000000000000000000000000000000000000000 मूल : वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमम्मि लोए अदुवा परत्या। दीवप्पणठेव अणंतमोहे, नेयाउअंदठुमदटठुमेव||१२| छायाः वित्तेन त्राणं न लभेत प्रमत्तः, अस्मिल्लोकेऽथवा परत्र। दीपंप्रणष्ट इवानन्तमोहः, नैयायिकं दृष्ट्वाऽप्पदृष्ट्वे व।।१२।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (पमत्ते) वह प्रमादी मनुष्य (इमम्मि) इस (लोए) लोक में (अहुवा) अथवा (परत्था) परलोक में (वित्तेण) द्रव्य से (ताणं) त्राण (शरण) (न) नहीं (लभे) पाता है (अणंतमोहे) वह अनंत मोह वाला (दीवप्पणठेव) दीपक के नाश हो जाने पर (ने याउअं) न्यायकारी मार्ग को (दठुमदठुमेव) देखने पर भी न देखने वाले के समान है। भावार्थ : हे गौतम! धर्म साधन करने में आलस्य करने वाले प्रमादी मनुष्यों की इस लोक और परलोक में द्रव्य के द्वारा रक्षा नहीं हो सकती है। प्रत्युत वे अनंत मोही पुरुष, दीपक के नाश हो जाने पर न्यायकारी मार्ग को देखते हुए भी नहीं देखने वाले के समान हैं। मूलः सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी, न वीससे पंडिए आसुपण्णे। घोरामुहुत्ता अबलं सरीरं,भारंडपक्खीवचरऽप्पमत्तो||१३|| छायाः सुप्तेषु चापि प्रतिबुद्धजीवी, न विश्वसेत् पण्डित आशुप्रज्ञः / घोरा मुहूर्ता अबलं शरीरं, भारण्डपक्षीव चरेऽप्रमत्तः।।१३।। 11 अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (आसुपण्णे) तीक्ष्ण बुद्धि वाला (पडिबुद्धजीवी) द्रव्य निन्द्रा रहित तत्वों का जानकार (पंडिए) पण्डित पुरुष (सुत्तेसुयावी) द्रव्य और भाव से जो सोते हुए प्रमादी मनुष्य हैं, उनका (न) नहीं (वीससे) विश्वास करे, अनुकरण करें, क्योंकि (मुहुत्ता) समय आयुक्षण करने में (घोरा) भयंकर है और (सरीरं) शरीर भी (अबलं) बल रहित है। अतः (भारंडपक्खीव) भारंड पक्षी की तरह (अप्पमत्तो) प्रमाद रहित (चर) संयम में विचरण कर। भावार्थ : हे गौतम! द्रव्य निंद्रा से जागृत तीक्ष्ण बुद्धि वाले पण्डित पुरुष जो होते हैं, वे द्रव्य और भाव से नींद लेने वाले प्रमादी पुरुषों के आचरणों का अनुकरण नहीं करते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि समय जो है वह मनुष्य की आयु कम करने में भयंकर है और यह भी नहीं है कि यह शरीर मृत्यु का सामना कर सके। अतएव जिस प्रकार भारंड पक्षी अपना चुगा चुगने में प्रायः प्रमाद नहीं करता है उसी तरह तुम भी प्रमाद रहित होकर संयमी जीवन बिताने में सफलता प्राप्त करो। 500000000000000000000000000000000000000000000000000000000 100000000000000000 Soooo00000000000ool Jan Education International निर्ग्रन्थ प्रवचन/143 2003 For Personal & Private Use Only boo000000000000006 _www.jainelibrary.org

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