Book Title: Nirgranth Pravachan
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Guru Premsukh Dham

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Page 169
________________ COO oboo0000000000000000000000000000000000000000000000000000000oogl 00000000000000 10000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (व्व) जैसे (रागाउरे) रागातुर (मुद्धे) मुग्ध (सद्दे) शब्द के विषय से (अतित्ते) आतृप्त (हरिणमिए) हरिण (मच्चुं) मृत्यु को (समुवेइ) प्राप्त होता है, वैसे ही (जो) जो आत्मा (सद्देसु) शब्द विषयक (गिद्धिं) गृद्धि को (मुवेइ) प्राप्त होती है (से) वह (अकालिअं) असमय में (तिव्वं) शीघ्र ही (विणास) विनाश को (पावइ) पाती है। __भावार्थ : हे आर्य! राग भाव में लवलीन, हित अहित का अनभिज्ञ, श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में अतृप्त ऐसा जो हिरण है वह केवल श्रोत्रेन्द्रिय के वशवर्ती होकर अपना प्राण खो बैठता है। उसी तरह जो आत्मा श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में लोलुप होता है, वह शीघ्र ही असमय में मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। मूल: गंधेसु जो गिद्धिमुवेइ तिलं, अकालिअं पावइ से विणासं| रागाउरेओसहिगंधगिद्धे, सप्पे बिलाओ विव निक्खमंतेll६|| छायाः गन्धेषु यो गृद्धिमुपैति तीव्रां, अकालिकं प्राप्नोति स विनाशम्। रागातुर औषधगंधगृद्धः, सर्पो बिलान्निव निःक्रामन्।।१६।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (ओसहिगंध गिद्धे) नाग दमनी औषध की गंध में मग्न (रागाउरे) रागातुर (सप्पे) सर्प (विलाओ) बिल से बाहर (निक्खमते) निकलने पर नष्ट हो जाता है। (विव) ऐसे ही (जो) जो जीव (गंधेसु) गंध में (गिद्धिं) गृद्धिपने को (उवेइ) प्राप्त होता है (से) वह (अकालिअं) असमय ही में (तिव्वं) शीघ्र (विणास) विनाश को (पावइ) प्राप्त होता है। भावार्थ : हे गौतम! जैसे नागदमनी गंध का लोलुप ऐसा जो रागातुर सर्प है, वह अपने बिल से बाहर निकलने पर मृत्यु को प्राप्त होता है। वैसे ही जो जीव गंध विषयक पदार्थों में लीन हो जाता है, वह शीघ्र ही असमय में अपनी आयु का अन्त कर बैठता है। मूल: रसेसु जो गिद्धिमुवेइ तिळ, अकालिअं पावइ से विणासं| रागाउरेबडिसविभिन्नकाए, मच्छे जहाआमिसभोगगिद्धे||१७| छायाः रसेषु यो गृद्धिमुपैति तीव्रां, अकालिकं प्राप्नौति स विनाशम्। रागातुरो बडिशविभिन्नकायः, मत्स्यो यथाऽऽमिषभोगगृद्धः / / 17 / / अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (जहा) जैसे (आमिसभोगगिद्धे) माँस भक्षण के स्वाद में लोलुप ऐसा (रागाउरे) रागातुर (मच्छे) मच्छ (बडिसविभिन्नकाए) माँस या आटा लगा हुआ ऐसा जो तीक्ष्ण कांटा 5000000000000000000000000000000000 Jain ED UCgpuri 10000000000000000000 निर्ग्रन्थ प्रवचन/166 WWAAIER 00000000000000 Ara

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