Book Title: Nandanvan Kalpataru 2018 06 SrNo 40
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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प्राकृतविभागः
कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्दाचार्यविरचितं प्राकृतद्व्याश्रयमहाकाव्यम्
चतुर्थः सर्गः तं निव-पुच्छिअ-दोवारिएण भणि ति आम गिम्ह-सिरी । उण्हेह सीअला णवि कयलि-वणे पेच्छ पुणरुत्तं ॥१॥ हन्दि विदेसो जीवइ हन्दि पिआ हन्दि किं पिआ मुक्का । हन्दि मरणं जमो गिम्हो हन्दि लवन्ति इअ पहिआ ।२।। हन्द महु हन्दि परिमलमिमं व भणिरेहि भसल-मिहुणेहि । उअ सहइ कंचणारो मउडो इव गिम्ह-लच्छीए ॥३॥ जणणि मिव धूअं पिव नत्तिं विअ सोअरं विव सहिं व । मालारीओं सिणेहा नव-कंचण-केअइमुवेन्ति ॥४॥ जेण अहुल्ला लवली वोलीणा णइ वसन्त-उउ-लच्छी । फुल्लं च धूलिकंबं तेण फुडा चेअ गिम्ह-सिरी ॥५॥ फुल्ल च्च सुगंध च्चिअ लयाण नोमालिआ बले रम्मा । जा किर मल्ली जा इर जवा बले ते मयण-बाणा ॥६।। सुत्ते जणम्मि जो हिर सद्दो चीरीण सुव्वए णवर । गाअइ किल तस्स मिसा णवरि वसन्तस्स गिम्ह-सिरी ।।७।। पहिआ अलाहि गन्तुं अणदइआण कुसलाइँ हुइ णाई । माई इह एध हद्धी इअ व्व चीरीहि उल्लविअं ॥८॥ समुहोट्ठिअम्मि भमरे वेव्वे त्ति भणेइ मल्लिउच्चिणिरी । वारण-खेअ-भएहिं भणिउं वेव्वे वयंसे त्ति ।।९।।

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