Book Title: Nandanvan Kalpataru 2018 06 SrNo 40
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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को वि जुआ सजुआणो अप्पणिआ सह पिअं जले नेउं । रूसविअप्पाणेणं अतोससी अप्पणइआ वि ॥६६॥ सव्वे अन्ने विनिवा खिवन्ति धारा - हरम्मि सव्वस्सि । सव्वत्थ त्थी - लोए सव्वम्मि जलं तहन्नम्मि ||६७ ||
अन्नत्थ कुन्तला अन्नस्सि कुसुमाइँ अन्नहिं हारा । पिच्छ मयच्छि-जणे सव्वहिं पि रहसेण जल - रमिरे ॥६८॥ काहिं जाहिं ताहिं इत्थीए रमइ नेस राय - वडू | की जीए तीए विविअड्ढाए निहिय-चित्तो ॥ ६९॥ अस्सि ठाणे जल - छणे इमस्सि हवन्ति नक्खङ्का । सव्वेसि अन्नेसिं जुआण जुअईण य पयासा ॥७०॥ सव्वाणं अन्नाण वि जुआण जुअईण एत्थ हलवोलो । न हु कास तास रम्मो केसिं तेसिं न देइ दिहिं ॥ ७१ ॥ कास वि तास सरिच्छा किंनर-नारीइ किंनरस्स तहा । गायन्ति इत्थ रमिरा वारिणि तरुणीउ तरुणा य ॥ ७२ ॥ कस्स वि तस्स जुआणस्स काइ ताए अ एत्थ जुअईए । नहु दीस तणु-लट्ठीजा न सरोमञ्च - कञ्चइआ ॥७३|| पुं- सद्दो जास मणं जस्स य जल - केलि-काल- दुल्ललिओ । किस्सा तिस्सा जिस्सा सो जुवईए अणुसरे ||७४
कीसे तीसे जीसे पणालिआए पलुट्टिअं नीरं । कीए जीए तीए वि बाहिरं तं न जुअईए ॥७५॥ काहे विनाऽहि - लोए काला वि न वा अमच्च - लोगम्मि | कइआ वि न भू-लोए जल - जन्तं एरिसं आसि ॥७६॥ जाला जलेण पुन्नं जन्त- हरं जल - छणो हुओ जाहे । दोवारिएण ताहे विन्नत्तमिमं नरिन्दस्स ॥७७৷৷
इआ गिम्हो पयट्टओ तइअ च्चिस किर आसि पाउसो । जाए ताला जल-च्छणे पत्तो अच्छि वहं खणे तहिं ॥ ७८ ॥
॥ चतुर्थः सर्गः सम्पूर्ण: ॥
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