Book Title: Mulachar ka Samikshatmak Adhyayana Author(s): Fulchandra Jain Shastri Publisher: Parshwanath Shodhpith VaranasiPage 10
________________ सम्मति पद्मभूषण आचार्य पं. बलदेव उपाध्याय 'आचार' श्रमण . संस्कृति के उद्बोधक जैनधर्म का मेरुदण्ड है। जिस प्रकार मेरुदण्ड मानवीय देह यष्टि को पुष्ट एवं सुव्यवस्थित बनाने में सर्वथा कृतकार्य है, उसी प्रकार आचार जैनधर्म को पुष्ट तथा परिनिष्ठित करने में सर्वतोभावेन समर्थ है। आचार के विषय में प्राचीनकाल से ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रणयन तथा संवर्धन होता आया। मूलाचार इसी जैन आचार संहिता का प्राचीन, महनीय तथा प्रामाणिक ग्रन्थ रत्न है। .."मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन नामक यह गवेषणात्मक प्रबन्ध डॉ० फूलचन्द्र जैन प्रेमी की कति है जिसमें लेखक ने मूलाचार के विषय में अनेक वर्षों तक ग्रन्थ का अनुशीलन कर प्रमेय बहुल ग्रन्थरत्न की रचना की है। इसमें मूलाचार के बहिरंग एवं अन्तरंग परीक्षा के द्वारा अनेक नवीन तथा मानवीय तथ्यों को खोज निकाला है जिससे लेखक के इस अध्ययन की प्रामाणिकता सिद्ध होती है । इस अध्ययन में साम्प्रदायिक आग्रह नहीं है प्रत्युत तुलनात्मक शैली का आश्रय कर तथ्यों का ऊहापोह किया गया है । लेखक ने श्वेताम्बरीय आचार ग्रन्थों के साथ भी इसकी तुलना कर इस प्रबन्ध को व्यापक दृष्टि से सम्पन्न बनाने का श्लाघनीय प्रयास किया है। ____ मेरी दृष्टि में यह अध्ययन जैन धर्म के आचारों के प्रतिपादन तथा संवर्द्धन में उपयोगी तथ्यों से परिपूर्ण होने का गौरव प्राप्त करने वाला एक विश्वसनीय विश्वकोश ही है। ऐसे उपयोगी विवेचनात्मक अध्ययन के लिए जैन समाज विद्वान् लेखक का सर्वदा ऋणी रहेगा तथा ऐसे ही गम्भीर अन्थों के निर्माण के लिए प्रेरणा देता रहेगर । गुरुपूर्णिमा, वि. सं. २०४५ दिनांक २८-७-८८ . आचार्य बलदेव उपाध्याय रवीन्द्रपुरी, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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