Book Title: Mulachar ka Samikshatmak Adhyayana Author(s): Fulchandra Jain Shastri Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 9
________________ चल रहा है । अपने जन्मभूमि के विकास में आपका अमूल्य सहयोग रहा है। दिनांक २०-१०.८७ के मध्यरात्रि को जब संसारवासी धनतेरस का पजन कर घोर निद्रा में सो रहे थे, आपने सन्थारा पच्छखाण कर समस्त मानव मात्र से क्षमायाचना कर इस नश्वर काया को त्यागकर हमेशा-हमेशा के लिये विदाई मांग ली। उनके परिजनों ने उनकी स्मृत्यर्थ सत्साहित्य के प्रकाशनार्थ पार्श्वनाथ विद्याश्रम को सात हजार रुपया प्रदान किया। एतदर्थ विद्याश्रम आपके परिवार का आभारी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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