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मेरी जीवन गाथा
सभामे गये। जन समुदाय पुस्कल था पं० कैलाशचन्द्रजी बनारस का व्याख्यान समयोचित था । पाठशालाका नाम श्री ज्ञानधन जैन सं कृत पाठशाला रक्खा गया। आज सर्वत्र पाश्चात्य शिक्षाका प्रचार है इसलिए लोगोंके संस्कार भी उसी प्रकार हो रहे हैं लोगोंके हृदयसे अध्यात्म सम्बन्धी संस्कार लुप्त होते जा रहे हैं यही कारण है कि सर्वत्र अशान्ति ही अशान्ति दृष्टिगोचर हो रही है । शान्तिका आस्वाद आजतक नहीं आया इसका मूल कारण विरोधी पदार्थोमे तन्मयता है । हम क्रोधको त्यागनेमे असमर्थ हैं और क्षमाका स्वाद चाहते हैं यह असम्भव है। संस्कार निर्मल बनानेकी आवश्यकता है हम आजतक जो संसारमे भ्रमण कर रहे हैं इसका मूल कारण अनादि संस्कारोंके न त्यागनेकी ही कुटेव है।
२६ जनवरीका दिन आ गया। आजसे भारतमे नवीन विधान लागू होगा अतः सर्वत्र उत्साहका वातावरण था। श्रीयुत महाशय डा० राजेन्द्रप्रसादजी विहारनिवासी इसके सभापति होंगे। श्राप
आस्थामय उत्तम पुरुष हैं। भारतको स्वतन्त्रता सिली परन्तु इसकी रक्षा निर्मल चारित्रसे होगी। यदि हमारे अधिकारी महानुभाव अपरिग्रहवादको अपनावें तथा अपने आपको स्वार्थकी गन्धसे अदूषित रक्खें तो सरल रीतिसे स्वपरका भला कर सकते है। श्री हुकमचन्द्रजी सलावावाले आये आप योग्य तथा स्वाध्यायके व्यसनी हैं। एक महाशय कुरावलीसे भी आये उनकी यह श्रद्धा है कि उपादानसे ही कार्य होता है । उपादानमे कार्य होता है इसमे किसीको विवाद नहीं परन्तु उपादानसे ही होता है यह कुछ संगत नहीं क्योंकि कार्यकी उत्पत्ति पूर्ण सामग्रीसे होती है, न केवल उपादानसे
और न केवल निमित्तसे। शास्त्र में लिखा है 'सामग्री जनिका कार्यस्य' अर्थात् सामग्री ही कार्यकी जननी है। यदि निमित्तके विना केवल उपादानसे कार्य होता है तो मनुष्य पर्यायरूप निमित्तके