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मेरी जीवन गाथा जन्म-मरणकी यातनाओंसे वचकर हमारा आत्मा शाश्वत सुखका पात्र होसके।
सागर विद्यालयका स्वर्ण जयन्ती महोत्सव सागरकी सत्तर्कसुधातरङ्गिणी पाठशाला पहले सत्तर्क विद्यालयके नामसे प्रसिद्ध हुई. अब गणेश दि० जैन संस्कृत विद्यालयके नामले प्रसिद्ध है। इस संस्थाने वुन्देलखण्ड प्रान्तमें काफी कार्य किया है। ५० वर्ष पूर्व जहाँ मन्दिरोंमे पूजा और विधान वाँचनेवाले विद्वान् नहीं मिलते थे वहाँ अव धवल-महाधवल जैसे ग्रन्थराजोंका अनुवाद और प्रवचन करनेवाले विद्वान् विद्यमान हैं। जहाँ संस्कृतके ग्रन्थ वांचनेमें लोग दूसरेका मुख देखते थे वहाँ आज संस्कृतमे गद्य पद्य रचना करनेवाले विद्वान तैयार हो गये हैं।
सागर बुन्देलखण्डका केन्द्र स्थान है अतः यहॉपर विद्याके एक विशाल आयतनकी आवश्यकता सदा अनुभवमे पाती रहनी थी। सागरके उत्साही लोगोंने अपने यहाँ एक छोटीसी पाठशाला खोली थी वह वृद्धि करते करते आज विशाल विद्यालयका रूप धारण कर समाजमें कार्य कर रही है। किसी समय इसमे ५ विद्यार्थी थे पर अव इसमें २०० छात्र भोजन पाते हुए विद्याध्ययन करते हैं। एक पहाड़ीकी उपत्यिकामें सुन्दर और स्वच्छ भवन विद्यालयका वना है उसीमे संस्कृत विभाग तथा हाईस्कूल इस प्रकार दोनों विभाग अपना कार्य संचालन करते हैं। संस्कृतमें प्रारम्भसे शास्त्री
आचार्य तक तथा हाईस्कूलमें एन्ट्रेस तक पढ़ाई होती है। ___समय जाते देर नहीं लगती। इस संस्थाको भी कार्य करते हुए बहुत वर्प हो गये थे इसलिए इसके आयोजकोंने भी स्वर्णजयन्ती