Book Title: Meri Jivan Gatha 02
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 533
________________ मेरी जीवन गाथा 'स्वतन्त्रता ही संसार वल्लरीकी सत्ताको समूल नाश करनेवाली सिधारा है और पराधीनता ही संसारकी जननी है ।' 'ईश्वर अन्य कोई नहीं । आत्मा ही सर्व शक्तिमान् है । यही संसारमे अपने पुरुषार्थके द्वारा रङ्कसे इतना समर्थ हो जाता है कि संसारको इसके अनुकूल वनते देर नहीं लगतीं ।" 'यदि आत्मकल्याणकी अभिलाषा है तो परकी अभिलाषा त्यागो ।' -४१२ 'कल्याणका मार्ग निश्चिन्त दशामें है । जव आत्मा स्वतन्त्र द्रव्य है तब उसे परतन्त्र बनाना ही बन्धनका कारण है ।' 'कल्याणका मार्ग अति सुलभ है परन्तु हृदयमें कठोरता नहीं होनी चाहिये ।' 'इस संसार मे जो शान्तिसे जीवन विताना चाहते हैं उन्हें पर की चिन्ता त्यागना चाहिये तथा स्वयंका इतना स्वच्छ आचरण करना चाहिये कि जिससे परको कष्ट न हो ।' 'किसीको वह उपदेश नहीं देना चाहिये जिसे तुम स्वयं करने में असमर्थ हो ।' 'मनको काबू करना कठिन नहीं, क्योंकि वह स्वयं पराधीन है । वह तो के सदृश है। सवार उसे चाहे जहां ले जा सकता है ।" ‘समयका सदुपयोग करो । पुस्तकोंके ऊपर ही विश्वास मत करो । अन्तःकरणसे भी तत्त्वको देखो ।' 1 'परकी आशा त्यागो | परावलम्वनसे कभी किसीका कल्याण नहीं हुआ ।' 'निरन्तर यही भावना रक्खो कि स्वप्नमे भी मोहके आधीन न होना पड़े । जो आत्मा मोहके आधीन रहता है वह कदापि सुख का पात्र नहीं हो सकता ।' 1

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