Book Title: Meri Jivan Gatha 02
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 511
________________ १७६ मेरी जीवन गाथा मुंगी हटवा दी तथा खुले स्थानमे पलाल पर शयन किया। जब अन्तिम दो दिन रह गये तब आपने छाँछका भी परित्याग कर दिया, केवल जल लेना स्वीकृत रक्खा । कार्तिक वदी ३ सं० २.१३ को १० वजे आपने तीन चुल्लू जलका आहार लिया। आहारके वाद आपको अधिक दुर्वलताका अनुभव हुआ फिर भी मुखाकृति अत्यन्त शान्त थी। आपने सबसे कहा कि आप लोग भोजन करें। महाराजकी आज्ञा पाकर सब लोग भोजनके लिये चले गये तथा सेवामें जो त्यागी थे उन्हे छोड़ अन्य त्यागी सामायिक करने लगे । हम भी सामायिकमे बैठना ही चाहते थे कि इतनेमें समाचार मिला कि महाराजका स्वास्थ्य एकदम खराव हो रहा है। हम उसी समय उनके पास आये। हमने पूछा कि महाराज | सिद्ध परमेष्ठीका ध्यान है। उन्होंने हूंकार भरा और उसी समय आपके प्राण निकल गये। सबके हृदय शोकसे भर गये। महाराज के शवको पद्मासनसे विमानमें बैठाकर ग्राममें जुलूस निकाला और आश्रमके पास ही वगलवाले मैदानमें आपका अन्तिम संस्कार किया गया। गोला तथा चन्दनका पुष्कल प्रवन्ध श्री गजराजजी कलकत्तावालोंने पहलेसे कर रक्खा था। रात्रिम शोकसभा हुई जिसमें महाराजके गुणोंका स्मरण कर उन्हें श्रद्धाञ्जलियों दी गई। _ हमारे हृदयमे विचार आया कि जिनका संसार अत्यन्त निफ्ट रह जाता है उन्हींका इस प्रकार समाधिमरण होता है। आगमम लिखा है कि जिसका सम्यक् प्रकारसे समाधिमरण होता है वह सात आठ भवसे अधिक संसारमें भ्रमण नहीं करता । भक्त भगवजिनेन्द्रसे प्रार्थना करता है कि दुक्खक्खनो कम्मक्खनो समाहिमरणं च बोहिलाहो व । मम होउ जगदबान्धव ! तव जिणवर वरणसरणेए ॥

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