Book Title: Meri Jivan Gatha 02
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 526
________________ साहुजीकी दान घोषणा ४८५ हमारा सागर पहुंचना शक्य नहीं है । इधरके लोगोंको इससे संतोष हुआ पर सागरके लोग निराश होकर चले गये। संसार है, सबको प्रसन्न रखनेकी क्षमता सबमें नहीं है। सूर्योदयसे कमल विकसित होता है पर उसी तालावमे कमलके पास लगा हुआ कुमुद बंद हो जाता है । इसे क्या कहा जाय ? पदार्थका परिणमन विचित्र रूप है। हर्षे और विपादका अनुभव लोग अपनी अपनी कषायके अनुसार ही करते हैं। ___ साहुजीकी दान-घोषणा वृद्धावस्थाके कारण शरीरकी जर्जरता तो बढ़ रही थी। उस पर भी यदा कदा वातका प्रकोप व्यग्रताको बढ़ा देता था इसलिए एक दिन निश्चय किया कि राजगृही रहा जाय । वहाँका वायुमण्डल शरीरके अनुकूल बैठ सकता है। श्रीराजकृष्णजीने इसके लिए एक विशिष्ट प्रकारकी कुर्सीका निर्माण कराया जिसमे पहिये लगाये गये थे और एक आदमी जिसे अच्छी तरह चला सकता था। ईसरीसे जाते समय मनमें विकल्प आया कि पार्श्व प्रभुके पादमूलसे हटकर जा रहा हूँ। फिर लौटकर आ सका या नहीं, इसलिए एक बार गिरिराजपर जाकर उनके दर्शन अवश्य करना चाहिये । निश्चयानुसार मधुवनके लिए प्रस्थान कर दिया। प्रत काल श्रीपार्श्व प्रभुकी वन्दनाके लिये गया। डोलीमे जाना पड़ा । मन ही मन औदारिक शरीरकी दशापर खेद उत्पन्न हो रहा था । एक समय था जब इसी शरीरसे पैदल यात्रा कर पाचप्रभुके दशेन किये थे पर अब उसे वाहन करनेके लिये दो आदमियोंकी

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