Book Title: Meri Jivan Gatha 02
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 459
________________ ४३४ मेरी जीवन गाथा गये । यहाँ पर सड़क के किनारे १ चौकी है । उसीमे भोजन । बना। यहां ७७ हाथ गहरा कूप है परन्तु पानी इतना मिष्ट नहीं । नदी १ फर्लाङ्ग है | स्थान रम्य है १० घर गोपाल लोगों के हैं । सायंकाल ४ || मील चलकर द्रासिलगंज आ गये। यहां पर एक संस्कृत पाठशाला है । उसमें ठहर गये । पाठशाला के प्रधानाध्यापक महान् साधु पुरुष हैं। आपके प्रयत्नसे इस पाठशालाका काम साधु रूपसे चलता है | व्याकरण साहित्यके आचार्य पर्यन्त यहाँ अध्ययन होता है । ५१ छात्र अध्ययन करते हैं । पाठशालाके सर्वस्त्र प्रधानाध्यापक हैं । आज बनारससे पं० महेन्द्रकुमारजी ओर पं० पश्नालालजी आये। दूसरे दिन प्रातः ३ मील चलकर मार्ग में १ मुसलमान के घर में ठहरे । घरका स्वामी साक्षर था । बहुत सत्कार से उसने ठहराया । वह अपने धर्मका पूर्ण श्रद्धानी था। सायंकाल यहाँसे ५ मील चलकर वरौधा आ गये । यहाँ पर ९ मिडिल स्कूल में ठहरे । यहाँके अध्यापकवर्ग अत्यन्त सभ्य हैं । १ कमरा तत्काल रिक्त कर दिया । प्रातःकाल यहाँसे ६ मील चलकर एक महन्तके स्थानपर निवास किया । बहुत ही पुष्कल और पवित्र स्थान था । श्री ठाकुरजीके मन्दिमें जो दालान थे उसमें गर्मीको बिताया । यहाँ पर मिर्जापुरके तहसीलदार जो कि जैन थे आये । आप बहुत भद्र हैं । धर्मकी उत्तम रुचि भी रखते हैं । वैष्णव सम्प्रदाय में अतिथिसत्कारकी समीचीन प्रथा है । इसका अनुकरण हम लोगोंको करना चाहिये । परमार्थसे सब जीव समान हैं। विकृत परिमाणोंसे ही भेद है । जिस दिन विकार चला जायगा उसी दिन यह जीव परमात्मा हो जायगा । परन्तु विकारका जाना ही कठिन है | शरीरमे थकावटका अनुभव होनेसे रात्रि यहीं व्यतीत की । दूसरे दिन प्रातःकाल ३ मील चलकर तुलसीग्राम आ गये । यहां पर नागा बाबाओं का अखाड़ा है । ६ वजे प्रवचन हुआ । प्रवचनमें यह बात

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