Book Title: Meri Jivan Gatha 02
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 477
________________ मेरी जीवन गाया किया । यहाँ १ डाक्टर साहबने अपना स्थान खाली कर दिया और स्वयं परिमार्जन कर हमे प्रेमसे ठहराया । ३ दिन उनकी दुकान बन्द रही । दुपहरीमे आप स्वयं छपरीमें लेटे रहे पर हमें अल्प कष्ट नहीं होने दिया । शिष्टताका जैसा व्यवहार अन्य समाजमे है उसका शतांश भी हमारी समाजमे नहीं । इसका मूल कारण अज्ञान है । जो जनता ज्ञानको ही नहीं जानती वह क्या परोपकार करेगी ? शामके समय १ मील चलकर एक कुटियामे ठहर गये । जंगलके स्वच्छ वातावरणमें शान्तिसे निद्रा आई । प्रातःकाल ४ मील चलकर १ जजके वॅगलामे ठहर गये । स्थान अत्यन्त रम्य है । उपयोग निर्मल रहा । स्वाध्यायमे काल गया । यहाँ पर एक नानकपंथी साधु रहता है जो साक्षर हैं तथा अपने मतमे दृढ़ श्रद्धा रखता है । यहाँ एक बहुत वृद्ध पुरुप श्राया । उसने हमे महात्मा जानकर प्रणाम किया और रात्रिके ११ बजे एक ग्रामसे २० मानव दर्शन करनेके लिये आये । ४५० प्रातः काल यहाँसे ४ मील चलकर चित्रशाली ग्राममे पहुँच गये। स्थान उत्तम था अतः गर्मीका प्रकोप नहीं हुआ । यहाँसे श्री सोहनलालजी व श्री चम्पालालजी सेठी गया चले गये । रफीगंज यहाँसे ४ मील है । श्राजकल ऋतुकी उग्रतासे भोजनके वाद तृपाका प्रकोप हो जाता है, प्रायः २२ घण्टा रहता है फिर भी चित्तमे यह खेद नहीं होता कि व्रत क्यों धारण किया । खेद इस बातका रहता है कि हम बाह्य वाधा तो सहन कर लेते हैं परन्तु अन्तरङ्ग कषायको नहीं रोक पाते अतः वाह्य क्लेश सहना नहींके तुल्य है । ज्येष्ठ कृष्णा ५ सं० २०१० को प्रातःकाल ८ वजे रफीगंज आ गये। श्री मन्दिरजीके नीचे ठहर गये । यहाँ पर जैन बन्धुओ में परस्पर अत्यन्त प्रेम है । पं० गोपालदासजी योग्य व्यक्ति हैं ।

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