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मेरी जीवन गाथा
देवों के शरीर में यह बात नहीं । अतः हमें उचित है कि इस मानव शरीर से ऐसा कार्य किया जाय कि जिससे आत्मा संसारके बन्धन से मुक्त हो जाय ।
श्रावण शुक्ला १४ सं० २००८ को क्षेत्रपालमे रक्षबन्धनका उत्सव हुआ । श्री पं० फूलचन्द्रजीका प्रक्चन हुआ । अनन्तर पं 'श्यामलालजी और श्री सुमेरुचन्द्रजी भगतके रक्षावन्धनपर व्याख्यान हुये । सबका सार यही था कि अपराधी अपराधी व्यक्तिकी भी उपेक्षा न कर उसके उद्धारका प्रयत्न करना चाहिए । श्री अकम्पनाचार्यने बलि आदि मन्त्रियोंके द्वारा घोर कष्ट भोगकर भी उनकी आत्माका उद्धार किया है। जैनधर्मकी क्षमा वस्तुतः अपनी उपमा नहीं रखती । पूर्णिमा के दिन शहरके बड़े मन्दिरमें प्रवचन हुआ । पं० राजधरलालजीने रक्षाबन्धनकी मनोहर गाथा सबको सुनाई । सबका चित्त प्रसन्न हुआ ।
भाद्रपद कृष्णा ४ सं० २००८ को पं० वंशीधरजी व्याकरणाचार्य बीनाका सम्यग्दर्शनपर सुन्दर विवेचन हुआ । आपने समयसारकी व्याख्या सुन्दर की । समय शब्दका अर्थ आत्मा है । उसका जो सार है वह समयसार है । इस तरह समयसारका अर्थ सिद्ध पर्याय है । उसकी प्राप्ति हो जाय इसीके लिए मनुष्य के प्रयत्न हैं । इसी तरह भाद्रपद कृष्णा ७ के दिन आपने बहुत बारीकी से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थीका वर्णन किया । वर्णन रोचक था ।
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भाद्रपद कृष्णा ८ सं० २००८ को महरौनीके पं० गोविन्ददास जीका व्याख्यान हुआ | आपने सत्समागम पर प्रभावशाली व्याख्यान दिया । सत्समागमसे ही मनुष्यमें मनुष्यता आती है । अतः उचित है कि ज्ञानादि गुणोंसे मनुष्य वृद्ध है उनकी सेवा करें।