Book Title: Mantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 138
________________ औलोक्यविजययन्त्रकल्प: [१३१ अवहरई दोसविदं, पीय पक्खालिऊण दुद्धण । सायणि मुग्गय(ल)भूयं, सुयरयणं देवयं झारणं ॥११॥ इय सिरितिहुयणविजय, जन्तं मायातिवेढियं कुणउ । भवियाणं वंछियत्थं, अवि हरणं सयलदुरियाणं । १२।। माया आई अन्ते, तिलोयबंभं समं ठविज्जासु। बंभन्ति पढमपूया, तिलोयपूया तओ बीया ॥१३।। नीलंग पासजिणं, पच्छा अच्चेह जन्त मज्झमि । .. मन्तक्खरपंतितिगं, जहकम्मं पूइए पुरिसा ।।१४।। दाहिणपासे जन्त, तो धरणो सहियो फणतिगेण । उत्तत्तकणयवण्णा, पूइज्जन्तो कूणइ अत्थे ।।१५।। दाहिणचलणस्स दाहिणंगमासणगयं गयं हरई । - वामचलणस्सयतलय, कमलस्स य तलगयं नमह ।।१६।। वामंमि चउम्यया, पउमकरा पउमवाहणा पउमा। .. . दाहिणवामेवरयं, कुभं सयाधरई ॥१७ । नोलंबरपरिहासा, रत्त गा रत्तकञ्चुया पउमा। - पावरियसेयवत्था, ऽभयणहयंकुसाय महिलयणं ।।१८।। जा वो ति-सत्त इगवीसं, संक्खाय इक्कक सुमेणं । ___ छम्मासाणं मन्भे, दापयाण एगचित्तेणं ॥१६।। अभिमतिऊण पढमं, तिलोयवणे ठवे सुमायजुयं । ___तस्सतंमि य बंभ, जाव दाऊण अठ्ठसय ।।२०।। पक्खित्ताघरमब्भे पुरिसेणं दसदिसासु सा धुलो। अबहरइ घोरसप्पं, दुजरं भूयसंघायं ।।२१।। अट्ठ मट्टो वि अक्खरह, तियलोयविजयजन्तस्स। एसो पहावकप्पो, भणियो पुब्विल्लसूरीहिं ।।२२।। जो नियकण्ठे धारइ, कप्पमिम कप्पसुक्खसारिच्छं । अविकप्पं सो कामिय कप्पणकप्पद्रुमो सहइ ॥२३॥ (इति शैलोक्यविजययंत्रकल्पः सम्पूर्णाः) tion

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