Book Title: Mantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 171
________________ १६४] मन्त्रकल्प संग्रह मध्ये दीयते तत्र लेपः क्रियते ग्रंथिर्याति अनुक्त तांबूलदले इदं वारत्रयं लिषित्वा श्रीषंडेन तम्बोलबीडिकां कृत्वा कनिष्टांतरेण कृत्वा दीयते ग्रंथियांति दृष्टप्रत्ययः || ४ || "अघणदाढादतपन्ति वेयणविहरीकय लोअलरकसुहकरणपणवसत्तरकर संपय । अत्ति नित्तह हंति तंत रविकड डूबह तह तुह नामिण टलइ नाह तक्खणि जप्पं तह ||५ ॥ “ॐ असमय लूणी” अनेन मंत्रेण सप्तवारं सूचीमभिमंत्र्य सकल मभिमंत्र्य भित्ता हौ क्षिप्पते दंतपीडा याति । ॐ सूर्यडूब कुकडउ एएई भाइ जिमइ, प्रषिरोग टलु अनेन मंत्र ेण वार २१ ऊड्यते । नेत्रपीडा याति ||५|| "रविदिइ सोवनदेविमंति कुंसुमुठिभमंति छिदिअ छिंदिअ सत्तवार रंधिणि जह जंतिअ । तिन्नितुल्ल मेलेवि, तुल्लमारिअं जणबाणि । तह आदिनाह, निसुणिअ तुह वाणिई || ६ || ॐ स्वर्ग्रद्वारे तिहां छि माडवी कटमांडवी, सोविन्नी भिराडी रूपची कुहाडी अमुका एकनी राघिणि तोलि घालि वडइ वेगि ज: ज: रांधिरिण चss वेगि जः जः बाप सुवर्णदेव्याकी शक्ति फुरइ गोमय हलिकायां पदं धारयित्वा दर्भमुष्ट्या वार ७ उ जित्वा तीक्ष्णकुठारिकया तो वार ७ दर्भ छिद्यते रविवारे राघिणि निवर्त्तते । एरंडीत ेल १, सरशिवत ेल २, तिलतेल ३ समभागि मेलोजे कुणहनई बार लागू हुइ तीणइ बाणिइं तेल अभिमंत्रीणइ मंत्रिइ मत्रीनइ तिहां खरड कीजइ राघिणि जाइ इणइ पूर्वकहि मंत्र मंत्रीइ ||६|| "नवमीदिरिण गुरुदिनपवरहाहू-नवमं तिइ त्रिगडू टंकणषार गयणवल्ली गदिमत्तिई ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184