Book Title: Mantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 173
________________ १६६] मन्त्रकल्प संग्रह तुलसीदल नवमरीअयोगि एकंतर नास इ, पुण पूगीफल भंगराजि नवि प्रायइ पासि । सीसकवेअण दुरि जंति धमली एकवखरि ___तह तुह कामिनकाम कुभ पयतलि जगभींतरि । ६।। .. तुलसी पत्र ६, मरिच ६, भक्षणे वेलाज्वरादि याति, पक्व. पूगीफलखंड , भांगरापत्र : भक्षणे पि| ( ) | इदं यंत्र खटिकया भाले एतल्लिखने सोसक यांति ।।६।। ॐनमो जूनलोप्रजारिईअमंतपहावई . मीणिइ मीणिग्र ढोर होइ नोरोग सहावई। ईलीमंत ऽभिमतिऊणचा उलजलपानिइं, हरिसा जंति तिसंझि बीयगुणणेण य मानिइ ॥१०॥" ॐनमो जूनलीजारि डालि मूलि पसरती अमि अझरती रामसीता एहवी प्रीति जाइरे वसहि इणइ मंत्रि वार २१ वामकर्णे कथ्यते, मीणाख्य ऊत्तरति। ॐनमो ईअले पीअले हिमवंतनिवासिनी निजजलगन्धावसरिगन्धा, नाकाहरिसा, दाताहरिसा, होताकृष्णा होता नंदोद कामिणगारी, सुभटकरामोरुपाउजो न प्रकासइ चतुर्ब्राह्मणघात कालकालो महाकाल पत्राणि २ ह्रां ह्रीं फुट्स्वाहा वार २१ जल चलुकत्रयमभिमंत्र्य पोयते हरिषा यांति ।। १० । ॐनमो हनूमंत मंति बरहल्ल पणासइ गोल्हामूलि कंठमाल तह चीरिअ पासिइं। आमलपारण तुल्लभागि गयमुत्तिई भावई नासि कस तुह पायकमलि सेविअ निअ भाविइ ॥११॥ ॐनमो ईली पीली नीली हिमपंथनिवारिणी नाकाहरिसा वाताहरिसा हरिता कृष्णा नरधोंधका मोरी विद्या.न प्रकासइ तु ब्राह्मणघातकंकालि २ महाकालि अंतरि व्यंतरि स्वाहा, अंगि

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