Book Title: Mantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh
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श्री देलुल्लापुरस्तोत्रादि-मन्त्रविधिसहितानि
निंबपत्र, सर्प कांचली, धूसउ, ईश्वरनु निमालि, हनुमंतनी मली, रविवारि गादहनु लीडउ, चउवटानी धूलि, वंशरोचन, जारिना कूकसा बिलाडिनी विष्टा, श्वाननी विष्टा, वासनी गांठि, सममात्रा एकत्र करी श्रीपंचंगुलीनइ मंत्रिइं करो रवि वारई १०८ अभिमंत्रीइ, दिन ३ काल ३ धूणी दीजइ, सवदोष छांडइ ।। “ॐ नमो भैरवाय शाकिन्यादिरूपं आकर्षय २ दर्शय २ स्वाहाः" वार २१ नीमतेलक्षेपे दोषज्ञानमिदं अनुक्तमपि. परीक्षार्थ लिष्यते “ॐ ह्रीं ह्रीं ह हा हि ही हु हू हे है हो हौ ह हः परमहंस स्वाहाः” वार २१ पाणी अभिमंत्रो पाइई जु जीवी जइ तु पेरि इहइ नही तु न रहि सही जीवी परीक्षा ॥२।३।। - 'तक्खण चाचरिणदेविमंति जह गंठीऐगा,
__ असुरचउक्खरिगलीमली पुण तत्थ विलग्गा। तिहुअरणमंत भिमंतिऊण चंदणलेवे सिय
नासई तह तुह देव समरिअ पयपंकय ।।४।।" .. प्रथप्रतीकार ग्रथिनु । ॐनमो स्वग्रंथी आवी वाविणि हाथी .. काती वलि सलि थलि बाहबिलाई अंगूठइ दीधइ जारवी धराई
आदिशक्ति महामाई । वार १०८ भणित्वा वस्त्रामा ड्यते, . ग्रथिर्याति सचीरिका वारिमध्ये एभिरक्षरैर्वारिमध्ये क्षिप्यते,
रोगीकस्य पाय्यते ग्रंथिरोगो यात्येव ।। भ्राष्ट्रकारककडहिल्लाधो मृदं संमोल्य १६ ((
। २ ६७ ७ ग्रन्थिस्थानेलेपः क्रियते, ग्रंथिर्याति ।। "ॐनमोभगवते श्रीपार्श्वनाथाय विश्वचिंतामणियते ह्री धरणेंद्रपद्मावतीसहिताय पट्टे मट्टे क्षुद्रविघट्ट, शूद्रान् स्तंभय २ दुष्टान् निध्वंसय २ मारय २ स्वाहाः" अनेन मंत्रेण १०८ चन्दनमभिमंत्र्य
२.४ २४
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