Book Title: Mantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh
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श्री देलुल्लापुरस्तोत्रादि-मंत्रविधिसहितानि
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श्रीदेलुल्लापुरस्तोत्रादि-मन्त्रविधिसहितानि
जय सुरअसुरनरिंदविंद-वंदियपयपंकय,
___ जय देलुल्लापुर वयंस सेवककयसंपय । किं पुण भूअसुमंतिजति, तुह जगपाणंदण,
धुत्त करिसु बहुभत्तिजुत्त, मरुदेवीइ नंदण ।।१।। कियदनुभूतमंयंत्र : स्तोत्रं करिष्ये ।।१।। "हरदह अंवल रत्तवाय-रुइनासणतप्पर,
सूईभाइरिण. नीरजोगि, कोइलवरवीर । डाइणि-साइणि-खित्तवाल न सोसिअ सारा,
कालमंतिइ जत्ति हति प्रारुग्गसरीरा ॥२।।" बिन्दुनवइ पइसठिजंति तह भैरवमंतिइ,
कणयपुप्फफमतेवि घाणपगडीदुअ जंति अ। पंचंगुलि अभिमंतीऊण धूणीइ साइणि दोस,
. देलुल्लादेव देव तुहू नामिणि तक्खणि ।।३।।" युगलं ।। - ॐनमो कोइल्लवीर अचलवाय छिन्नउ, कोइल्लवीर रत्त. वायछिन्नउ, कोइल्लवीरहलद्र उ छिन्नउ ईणइं मंत्रिइ न जाइ तु • श्रीअजयपालचक्रवर्तिवहूनी साडी चूकइ, अनेन मंत्रण शूचीद्वयं कर. . संपुटे गृहीत्वा ३०८ नीरेण प्रक्षाल्य भाजने तद्भाजनं गुरुकथितस्थाने स्थाप्य, हरद्र कवातनिवृत्तिः, अंचलवातपुनर्दर्भण उड्यते ।।।
ॐनमो कालुकाल श्रीमहादेवतणु प्रजाल पगि कोऊ माघि जाल लिउ नाम फेडउ ठाम वाप वीर कालू तोरी शक्ति फुरइ मोरा चाड सरइ, पूर्वं दससहस्राणि गुणयित्वा रक्तचन्दनगुग्गलकणयरपुष्प १०८ होमं कृत्वा रक्तचन्दनेन इमं यन्त्र विलिख्य कण्ठे ध्रियते, शेषं गुरुगम्यं शाकिन्यादिदोष नाशयति ।
ॐनमो महामाया बालकुयारी सेतसिणगार सुवर्णपालरिव बइट्ठी करइ सार लामु चीतवइ तेहनइ करइ संहार, संतोष स्वाहा ह्रींठः अनेन मंत्रणाभिमन्त्र्य पत्रादि दीयते ।।१।।
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