Book Title: Mantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh
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१४२ ॥
मन्त्रकल्प संग्रह
पतोद्य तिप्रचयतज्जितजातरूप
द्विद्वादशप्रमजिनांह्रियुगं महामि ||६||
( ॐ ह्रीमित्यादि दीपं )
कृष्टागुरुप्रमुखसारसुगन्धद्रव्य
धूमव्रजप्रमुदितादितिनन्दनौ
प्रोद्भुत मूर्तिभिरलं वरघूपजालैः ।
द्विद्वादशमजिनांह्रियुगं महामि ॥ ७ ॥
(मित्यादि धूपं )
नारंगपूग कदलीफलनालिकेर
जय
सन्मातुलु रंगकरक प्रमुखैः फलौघैः ।
शाखासुपक्वमधिगम्य विरक्त चित्तै
द्विद्वादशप्रमृजिनांह्रियुगं महामि ॥८६॥
(हमित्यादि फलं )
जलगन्धाक्षतैः पुष्पैश्चारुभिर्दीपधूपकैः ।
फलैर विधायाशु श्रीजिनेभ्यो दद मृदा || ||
( ॐ ह्रीमित्यादिअ )
अथ जयमालाऋषि मंडलस्य यथापरमवि जिणदे वह सुरकय सेवहंगा सियजम्मजरामरह' ।
शिवसुहकयरायहं गयमय रायह
णियभत्तिए जुत्तिए थुमि ॥ ५ ॥
घत्ता जय आइणाह कम्मारिबाह
जय अजिजिणेसर माहेदाह ।
संभव गयभवरायडंभ
जय दिजिण परमबंभ || १ ||
जय पऊमह सुरविहियसेव । जय चन्द पह जियचन्दहास ||२||
जय सुमइ कुमइगय देवदेव
जय जय सुपास मणहरसुपास
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