Book Title: Mantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 150
________________ श्री ऋषिमण्डलस्तोत्र [१४३ • जय पुष्पयंत जियपुष्फयंत जय सोअल गोरसियपीइकन्त । जय सेग्रंस देव कयभच्चसेय जय वासुपूज्य सुरकियणोसेय ॥३॥ जय विमलजिणेसर विमलणाण जय जिण अरणंत गयपरमठाण । जय . धम्मधम्मद सणसमत्थ . जयः सन्ति गयगन्थपरमत्थ ॥४॥ जय कुथुसामि गयकम्मपंक जय अरअरुसामिय समियसंक । जय मल्लिसामि गियसत्तभंग जय मुणिसुच्चय वयजियप्रणंग ।।५।। जह णमिजिण णिरसियसच्चरंग __. जय सेमिन मुच्चुरायमईसंग । जय पासदे वफणिवईवरिठ जयंवद्धमाण गुणगणहगरिठ ।।६।। घत्ता इय थुणिवि जिणेसर महिपरमेसर णासियकम्मकलंकभर । - सुखयबहुसंसियभवगईभंसिय ___ऊत्तारि जुई अग्घु वर ।।७।। ... ( इतिश्रीऋषिमण्डलस्तवनं संपूर्णम् ) वर॥७॥ एक्लो सौंसर्वशास्त्रदशिनोसर्वशास्त्रदर्शयदर्शयकुडलिनी नमः । जाप्यकालेनमहोमकोलेस्वाहा । पुष्प १२००० स्वेत होम १२००० जाप होमोरात्र--कर्तव्यो ब्रह्मचर्येण भूमिशयनेनएकभक्त नप्रायेणमधुराहारेणभाव्यं । एकखण्डसिवनिपट्टे जातिले "पाश्रोषंडकर्पूरगोरूचनाभि-मंडलंलिखनीयं तस्योपरिजापोद यः त्रयोदशेदिने सर्वादिनानांपुष्पणि छायाशुष्काण्येकत्रामलयत्वागुग्जालेनमहमेलयित्वा कुरिगुठिकाकार्या

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