Book Title: Mahasati Madanrekha Diwakar Chitrakatha 012
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 7
________________ सती मदनरेखा युगबाहू ने कहा नहीं भैया ! आपको उदास देखकर मैं चुप कैसे बैठ सकता हूँ। आपकी खुशियों के लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ.... मुझसे कुछ मत छुपाइए। बताइए भैया क्या बात है? भाई ! सीमा पार के शत्रु सर उठा रहे हैं। बार-बार पड़ौसी नगरों में लूटपाट मचाते हैं प्रजा.. दुःखी है। इसलिए अब सोचता हूँ युद्ध के लिए जाऊँ और दुश्मनों का सर कुचल डालूं..... wwwwwwwwwwwwwwww SUNSNNN 4U बस, भैया, इतनी सी बात के लिए आप चिंता करते। हैं। मुझे जाने की आज्ञा दीजिए। दुश्मनों के दाँत खट्टे कर आपके चरणों में लाकर पटकता हूँ। इधर मौका देखकर मणिरथ ने रंभा नाम की दासी को बुलाया। उसे अपना मोती का हार इनाम देते हुए कहारंभा, मदनरेखा, मेरे मन में बस गई है, अब उसे हमारे महल में लाने का काम तुझे करना है। काम होने पर तुझे भरपूर इनाम मिलेगा। DAOS महाराज! आप जैसा चाहते हैं, वैसा ही होगा। 526 H मणिरथ यही तो चाहता था। सेना साथ लेकर युगबाहू युद्ध करने मालव की सीमा पर चला गया। Navsanelibrary.org

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