Book Title: Mahasati Madanrekha Diwakar Chitrakatha 012 Author(s): Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 24
________________ मदनरेखा ने आश्च के साथ कहा देव ! आप कौन हैं? मैं तो आपको पहचानती नहीं. हूँ, फिर. उपकार की बात कैसी? .... और मैंने शुभभावों के साथ प्राण त्यागे। इसी प्रभाव से मैं देव विमान में उत्पन्न हुआ। तुमने मुझ पर महान उपकार किया है इसलिये मैं सर्वप्रथम तुम्हारे दर्शनों के लिये आया हूँ। Jain Education International सती मदनरेखा 033X}}} देव बोला मदनरेखा, मैं युगबाहू हूँ। मरते समय भाई के प्रति मेरे मन में रोष और द्वेष की लपटें उठ रही थीं परन्तु तुमने जो शान्ति और समभाव की शिक्षा दी, उससे मेरा क्रोध शान्त हो गया। णमोकार मंत्र के श्रवण से मेरे मन को शान्ति मिली। हर्ष और विस्मय से विभोर होकर मदनरेखा बोली पति को सद्गति प्रदान करने में ही पत्त्नी के कर्त्तव्य की सफलता है। आज मैं अपनी सब दुःख और पीड़ाएँ भूल गई.. मेरा जीवन सफल हुआ... 22 For Private & Personal Use Only VIDEO www.jainelibrary.org/Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38